essay on sacrifice in hindi
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hey dear ✨
✨✨✨✨ SACRIFICE✨✨✨
त्याग का आदर्श |
किसी बियाबान जंगल में एक साधु रहता था । उसकी कुटिया छोटी-सी थी । कंद-मूल-फल खाकर वह अपना गुजारा करता था तथा दिन-रात ईश्वर के ध्यान में लीन रहता था ।
एक दिन आधी रात के समय किसी ने कुटिया का दरवाजा खटखटाया । साधु ने उठकर दरवाजा खोला । देखता क्या है कि एक आदमी खड़ा है । पानी से सराबोर, ठंड से थर-थर कांपता हुआ । फिर वह आदमी बड़ी कठिनाई से बोला: ”महाराज, बड़ी जोर से बारिश हो रही है ।
चारों ओर अंधेरा फ्लौ है । मैं रास्ता भूल गया हूं । बड़ी कृपा होगी, अगर आप मुझे रात को अपनी कुटइया में ही रह लेने दे ! मैं सवेरे होते ही चला जाऊंगा ।” साधु ने बड़े प्यार से कहा : ”इसमें पूछने की क्या बात है । भाई, मेरी कुटिया में एक आदमी सो सकता है, पर दो आदमी बैठ सकते हैं आओ, अंदर आओ ।
हम बैठकर रात गुजार लेंगे ।” वे दोनों भीतर गए और आग के सहारे बैठकर बातें करने लगे । थोड़ी देर बाद दरवाजे पर फिर खटखट हुई । साधु ने द्वार खोला । एक आदमी खड़ा था । पहले आदमी की तरह पानी से तरबतर और कांपता हुआ ।
साधु को देखकर बोला : “मैं भटकते-भटकते हैरान हो गया हूं । रास्ता नहीं मिलता । क्या आज की रात मैं आपकी कुटिया में बिता सकता हूं, दया कीजिए ।” साधु ने प्रेमपूर्वक कहा : ”भैया, यह कुटिया मेरी नहीं तुम सबकी है । इस कुटिया में इतनी जगह है कि एक आदमी लेट सकता है, दो बैठ सकते हैं और तीन खड़े हो सकते है । तुम अंदर आ जाओ । तीनों खड़े होकर मौज से बातें करेंगे ।”
इतना कहकर उसने बड़ी आत्मीयता से उस आदमी को अंदर कर लिया । कहते हैं, यह कोई कथा मात्र नहीं है । एक समय था जबकि हमारे देश में दूसरों के लिए लोग बड़े-से-बड़ा त्याग करने को तैयार रहते थे और उस समय के त्याग आज भी हमारे लिए आदर्श हैं ।
✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨
hope its help uh!!
✨✨✨✨ SACRIFICE✨✨✨
त्याग का आदर्श |
किसी बियाबान जंगल में एक साधु रहता था । उसकी कुटिया छोटी-सी थी । कंद-मूल-फल खाकर वह अपना गुजारा करता था तथा दिन-रात ईश्वर के ध्यान में लीन रहता था ।
एक दिन आधी रात के समय किसी ने कुटिया का दरवाजा खटखटाया । साधु ने उठकर दरवाजा खोला । देखता क्या है कि एक आदमी खड़ा है । पानी से सराबोर, ठंड से थर-थर कांपता हुआ । फिर वह आदमी बड़ी कठिनाई से बोला: ”महाराज, बड़ी जोर से बारिश हो रही है ।
चारों ओर अंधेरा फ्लौ है । मैं रास्ता भूल गया हूं । बड़ी कृपा होगी, अगर आप मुझे रात को अपनी कुटइया में ही रह लेने दे ! मैं सवेरे होते ही चला जाऊंगा ।” साधु ने बड़े प्यार से कहा : ”इसमें पूछने की क्या बात है । भाई, मेरी कुटिया में एक आदमी सो सकता है, पर दो आदमी बैठ सकते हैं आओ, अंदर आओ ।
हम बैठकर रात गुजार लेंगे ।” वे दोनों भीतर गए और आग के सहारे बैठकर बातें करने लगे । थोड़ी देर बाद दरवाजे पर फिर खटखट हुई । साधु ने द्वार खोला । एक आदमी खड़ा था । पहले आदमी की तरह पानी से तरबतर और कांपता हुआ ।
साधु को देखकर बोला : “मैं भटकते-भटकते हैरान हो गया हूं । रास्ता नहीं मिलता । क्या आज की रात मैं आपकी कुटिया में बिता सकता हूं, दया कीजिए ।” साधु ने प्रेमपूर्वक कहा : ”भैया, यह कुटिया मेरी नहीं तुम सबकी है । इस कुटिया में इतनी जगह है कि एक आदमी लेट सकता है, दो बैठ सकते हैं और तीन खड़े हो सकते है । तुम अंदर आ जाओ । तीनों खड़े होकर मौज से बातें करेंगे ।”
इतना कहकर उसने बड़ी आत्मीयता से उस आदमी को अंदर कर लिया । कहते हैं, यह कोई कथा मात्र नहीं है । एक समय था जबकि हमारे देश में दूसरों के लिए लोग बड़े-से-बड़ा त्याग करने को तैयार रहते थे और उस समय के त्याग आज भी हमारे लिए आदर्श हैं ।
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