Hindi, asked by priyapandeyips, 10 months ago

Essay on सत्संगति | Satsangati | Good Company


priyapandeyips: usidhchcgvvoc

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Answered by swamygujjala68p2vykm
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इस दोहे का तात्पर्य है कि व्यक्ति कितना भी चौकस हो, कितना बुद्धिमान हो, सर्तक हो, लेकिन अगर वह बुरे व्यक्ति का संग करता है तो उस पर उसका बुरा प्रभाव पड़ना निश्चित है। मनुष्य का स्वभाव है वह जल की तरह नीचे जाने को सदैव तत्पर रहता है।

उसके विचारों, उसके जीवन को सही दिशा देने के लिये सज्जनों का साथ जरूरी है।

Essay on Satsangati in Hindiव्यक्ति की पहचान उसके मित्रों से होती है जिनके साथ वह उठता बैठता है, समय बिताता है। अगर इंसान उन्नति करना चाहता है, सुख पाना चाहता है तो वह सदैव अच्छे लोगों का साथ करे।

इतिहास में ऐसे कई उदाहरण हैं। जब एक भटका हुआ व्यक्ति सत्संगति के कारण राह पर आ गया। ऋषि वाल्मीकि को ही लें। पहले वे डाकू थे। सप्तऋषि के वचनों से प्रभावित होकर वह तपस्वी बन गये और बाद में उन्होंने रामायण की रचना की। इसी प्रकार अंगुलिमाल एक डाकू था। महात्मा बुद्ध से साक्षात्कार होने पर वह उनके वचनों से प्रभावित हो उनकी शरण में आ गया। उसका जीवन ही बदल गया।

उदाहरण देने के लिये इतिहास का सहारा न भी लें, अपने आस पास ही देखें, तो पायेंगे कि जिसने सत्संग किया, वह तर गया। गन्दे नाले का पानी गंगा नदी में गिरता है तो उसक अपना अस्तित्व मिट जाता है अर्थात वह भी गंगाजल हो जाता है। स्वाति की बूँद सीप में गिरती है तो मोती बन जाती है। पारस के स्पर्श से लोहा भी सोना बन जाता है।

हमें सदैव समाज के उन्नत, बुद्धिमान एवं सज्जन व्यक्तियों की संगति में समय बिताना चाहिये। इससे हमारे व्यक्त्वि का विकास होता है। विचारों को सही दिशा मिलती है। आत्मा का भोजन सत्संगति है। सत्संगति के प्रभाव से ही हम सुखद, संतुष्ट और शान्त जीवन बिताने कें समर्थ होंगे।

अच्छा साथ हमें बुरे रास्ते से हटाकर अच्छे रास्ते पर ले जाता है। जरूरत पड़ने पर सही परामर्श देता है, सदैव सत्कर्मों की प्रेरणा देता है। सत्संगति वह पतवार है जो हमारे जीवन की नाव को भंवर और तूफान में फंसने नहीं देती। हमें किनारे तक पहुँचाने में सहायक होती है।


swamygujjala68p2vykm: Plz mark as brainliest
Answered by kohav1310
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