essay on shiksha ka yogdaan in hindi
Answers
Answered by
1
शिक्षा मनुष्य के अंदर अच्छे विचारों को भरती है और अंदर में प्रविष्ठ बुरे विचारों को निकाल बाहर करती है । शिक्षा मनुष्य के जीवन का मार्ग प्रशस्त करती है । यह मनुष्य को समाज में प्रतिष्ठित करने का कार्य करती है । इससे मनुष्य के अंदर मनुष्यता आती है। इसके माध्यम से मानव समुदाय में अच्छे संस्कार डालने में पर्याप्त मदद मिलती है।
शिक्षा मनुष्य को पशु से ऊपर उठाने वाली प्रक्रिया है । पशु अज्ञानी होता है उसे सही या गलत का बहुत कम ज्ञान होता है । अशिक्षित मनुष्य भी पशुतुल्य होता है । वह सही निर्णय लेने में समर्थ नहीं होता है । लेकिन जब वह शिक्षा प्राप्त कर लेता है तो उसकी ज्ञानचक्षु खुल जाती है । तब वह प्रत्येक कार्य सोच-समझकर करता है । उसके अंदर जितने प्रकार की उलझनें होती हैं, उन्हें वह दूर कर पाने में सक्षम होता है । शिक्षा का मूल अर्थ यही है कि वह व्यक्ति का उचित मार्गदर्शन करे । जिस शिक्षा से व्यक्ति का सही मार्गदर्शन नहीं होता, वह शिक्षा नहीं बल्कि अशिक्षा है ।
शिक्षा व्यक्ति को ज्ञानवान बनाती है । विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त कर सांसारिक एवं आध्यात्मिक ज्ञान से युक्त होता है । इस ज्ञान से उसके व्यक्तित्व का विकास होता है । वह ज्ञान-विज्ञान के उन क्षेत्रों में महारत हासिल करता है जो उसके भावी जीवन को सुख शांति और धन-संपत्ति से भर देता है । वह मानव समाज के लिए ऐसे-ऐसे कार्य करने में सक्षम होता है जिससे मानवता समुन्नत होती है । शिक्षा मनुष्य को दुर्गुणों की पहचान में मदद करती है ताकि वह इनसे सदा ही दूरी बनाए रख सके । शिक्षा वास्तविक अर्थों में मनुष्य को जीवन जीना सिखाती है ।
शिक्षा का महत्त्व दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है । आज हर कोई अपने बच्चों को शिक्षित बनाना चाहता है । अच्छी शिक्षा के मायने भी बदल गए हैं । पुराने जमाने की शिक्षा में चरित्र-निर्माण पर जोर था इसलिए अधिकतर धार्मिक और नीति-संबंधी शिक्षा ही दी जाती है । आज शिक्षा का उद्देश्य मौलिक रूप से कैरियर का निर्माण है । इसलिए शिक्षा में ज्ञान-विज्ञान और तकनीकी का अधिकाधिक समावेश हो गया है । इसके फलस्वरूप शिक्षा एक व्यवसाय बनती जा रही है ।
आज के वैज्ञानिक युग में शिक्षा प्राप्त किए बिना मनुष्य की उन्नति नहीं हो सकती । शिक्षा से रहित व्यक्ति वैज्ञानिक, इंजीनियर, डॉक्टर, अधिकारी, राजनेता, अध्यापक, वकील आदि कुछ भी नहीं बन सकता । अशिक्षितों को सभ्य समाज में अच्छी निगाह से नहीं देखा जाता है । अशिक्षित न तो पुस्तक या अखबार पढ़ सकता है और न ही वह दुनिया की हलचलों पर सही निगाह रख सकता है । वह आधुनिक युग की समस्याओं से अनजान बना रहता है । वह समाज को नई दिशा देने पर अक्षम सिद्ध होता है । उसे बात-बात पर दूसरों की सलाह का मुहताज बना रहना पड़ता है ।
शिक्षा मनुष्य को शक्तिशाली बनाती है । मनुष्य के पास जितनी अधिक बौद्धिक क्षमता होती है, उसकी सामर्थ्य बढ़ती जाती है । उसके लिए उन्नति के द्वार खुलते जाते हैं । वह अपने तकनीकी कौशल का प्रयोग कर दुनिया में अपना अलग स्थान बनाता है । वह धन-संपदा से युक्त होकर अपनी जिंदगी अपनी इच्छा से जी सकता है । जो अशिक्षित हैं उनके लिए तो प्राय : धन के लाले ही पड़ जाते हैं । अशिक्षितों को समाज का एक कमजोर सदस्य माना जाता है ।
शिक्षा के उपयोग तो अनेक हैं परंतु उसे नई दिशा देने की आवश्यकता है । शिक्षा इस प्रकार की होनी चाहिए कि व्यक्ति अपने परिवेश से परिचित हो सके । शिक्षा में उन बातों का भी समावेश होना चाहिए जिससे मनुष्य का आत्मिक विकास हो सके । वर्तमान समय की शिक्षा व्यक्ति को धन लोलुप बना रही है । व्यक्ति आत्म-केंद्रित होकर रह गया है । वह बेईमानी, भ्रष्टाचार और दिखावे को प्रश्रय देने लगा है । वर्तमान शिक्षा के बोझ तले मनुष्य की आत्मा खोती चली जा रही है ।
शिक्षा के महत्त्व को देखते हुए इसे और अधिक व्यापक बनाने की आवश्यकता है । शिक्षा को जन-जन तक फैलाने के लिए तीव्र प्रयासों की आवश्यकता है । इक्कीसवीं सदी में भारत का हर नागरिक शिक्षित हो, इसके लिए सभी जरूरी कदम उठाने होंगे । सर्वशिक्षा को प्रभावी तरीके से लागू करने की आवश्यकता है ।
शिक्षा मनुष्य को पशु से ऊपर उठाने वाली प्रक्रिया है । पशु अज्ञानी होता है उसे सही या गलत का बहुत कम ज्ञान होता है । अशिक्षित मनुष्य भी पशुतुल्य होता है । वह सही निर्णय लेने में समर्थ नहीं होता है । लेकिन जब वह शिक्षा प्राप्त कर लेता है तो उसकी ज्ञानचक्षु खुल जाती है । तब वह प्रत्येक कार्य सोच-समझकर करता है । उसके अंदर जितने प्रकार की उलझनें होती हैं, उन्हें वह दूर कर पाने में सक्षम होता है । शिक्षा का मूल अर्थ यही है कि वह व्यक्ति का उचित मार्गदर्शन करे । जिस शिक्षा से व्यक्ति का सही मार्गदर्शन नहीं होता, वह शिक्षा नहीं बल्कि अशिक्षा है ।
शिक्षा व्यक्ति को ज्ञानवान बनाती है । विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त कर सांसारिक एवं आध्यात्मिक ज्ञान से युक्त होता है । इस ज्ञान से उसके व्यक्तित्व का विकास होता है । वह ज्ञान-विज्ञान के उन क्षेत्रों में महारत हासिल करता है जो उसके भावी जीवन को सुख शांति और धन-संपत्ति से भर देता है । वह मानव समाज के लिए ऐसे-ऐसे कार्य करने में सक्षम होता है जिससे मानवता समुन्नत होती है । शिक्षा मनुष्य को दुर्गुणों की पहचान में मदद करती है ताकि वह इनसे सदा ही दूरी बनाए रख सके । शिक्षा वास्तविक अर्थों में मनुष्य को जीवन जीना सिखाती है ।
शिक्षा का महत्त्व दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है । आज हर कोई अपने बच्चों को शिक्षित बनाना चाहता है । अच्छी शिक्षा के मायने भी बदल गए हैं । पुराने जमाने की शिक्षा में चरित्र-निर्माण पर जोर था इसलिए अधिकतर धार्मिक और नीति-संबंधी शिक्षा ही दी जाती है । आज शिक्षा का उद्देश्य मौलिक रूप से कैरियर का निर्माण है । इसलिए शिक्षा में ज्ञान-विज्ञान और तकनीकी का अधिकाधिक समावेश हो गया है । इसके फलस्वरूप शिक्षा एक व्यवसाय बनती जा रही है ।
आज के वैज्ञानिक युग में शिक्षा प्राप्त किए बिना मनुष्य की उन्नति नहीं हो सकती । शिक्षा से रहित व्यक्ति वैज्ञानिक, इंजीनियर, डॉक्टर, अधिकारी, राजनेता, अध्यापक, वकील आदि कुछ भी नहीं बन सकता । अशिक्षितों को सभ्य समाज में अच्छी निगाह से नहीं देखा जाता है । अशिक्षित न तो पुस्तक या अखबार पढ़ सकता है और न ही वह दुनिया की हलचलों पर सही निगाह रख सकता है । वह आधुनिक युग की समस्याओं से अनजान बना रहता है । वह समाज को नई दिशा देने पर अक्षम सिद्ध होता है । उसे बात-बात पर दूसरों की सलाह का मुहताज बना रहना पड़ता है ।
शिक्षा मनुष्य को शक्तिशाली बनाती है । मनुष्य के पास जितनी अधिक बौद्धिक क्षमता होती है, उसकी सामर्थ्य बढ़ती जाती है । उसके लिए उन्नति के द्वार खुलते जाते हैं । वह अपने तकनीकी कौशल का प्रयोग कर दुनिया में अपना अलग स्थान बनाता है । वह धन-संपदा से युक्त होकर अपनी जिंदगी अपनी इच्छा से जी सकता है । जो अशिक्षित हैं उनके लिए तो प्राय : धन के लाले ही पड़ जाते हैं । अशिक्षितों को समाज का एक कमजोर सदस्य माना जाता है ।
शिक्षा के उपयोग तो अनेक हैं परंतु उसे नई दिशा देने की आवश्यकता है । शिक्षा इस प्रकार की होनी चाहिए कि व्यक्ति अपने परिवेश से परिचित हो सके । शिक्षा में उन बातों का भी समावेश होना चाहिए जिससे मनुष्य का आत्मिक विकास हो सके । वर्तमान समय की शिक्षा व्यक्ति को धन लोलुप बना रही है । व्यक्ति आत्म-केंद्रित होकर रह गया है । वह बेईमानी, भ्रष्टाचार और दिखावे को प्रश्रय देने लगा है । वर्तमान शिक्षा के बोझ तले मनुष्य की आत्मा खोती चली जा रही है ।
शिक्षा के महत्त्व को देखते हुए इसे और अधिक व्यापक बनाने की आवश्यकता है । शिक्षा को जन-जन तक फैलाने के लिए तीव्र प्रयासों की आवश्यकता है । इक्कीसवीं सदी में भारत का हर नागरिक शिक्षित हो, इसके लिए सभी जरूरी कदम उठाने होंगे । सर्वशिक्षा को प्रभावी तरीके से लागू करने की आवश्यकता है ।
Similar questions