Hindi, asked by krishna2707, 1 year ago

Essay on shishir ritu in Hindi of 600 words​

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Answered by Sneha9326
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Answered by Aishakhurrana
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बसंत, ग्रीष्म और वर्षा देवी ऋतु हैं तो शरद, हेमंत और शिशिर पितरों की ऋतु है। शिशिर में कड़ाके की ठंड पड़ती है। घना कोहरा छाने लगता है। दिशाएं धवल और उज्ज्वल हो जाती हैं मानो वसुंधरा और अंबर एकाकार हो गए हों। ओस से कण-कण भीगा जाता है। 

शिशिर में वातावरण में सूर्य के अमृत तत्व की प्रधानता रहती है तो शाक, फल, वनस्पतियां इस अवधि में अमृत तत्व को अपने में सर्वाधिक आकर्षित करती हैं और उसी से पुष्ट होती हैं। मकर संक्रांति पर शीतकाल अपने यौवन पर रहता है। शीत के प्रतिकार तिल, तेल आदि बताए गए हैं। 

ज्योतिषाचार्य व्यास के अनुसार शिशिर में ठंड बढ़ने के कारण अनेक प्रकार के स्वास्थ्यवर्धक पाक, मेवों, दूध, गुड़-मूंगफली आदि शरीर को पुष्ट करते हैं। इस ऋतु में हाजमा ठीक रहता है। नई फसल आने पर परमात्मा को पहले अर्पित करते हैं इस समय व्रत-त्योहारों में तिल का महत्व बताया गया है। माघ माह में गणपति आराधना होती है। शनिश्चरी व सोमवती अमावस्या, मकर संक्राति, तिलकुटा एकादशी, तिल चतुर्थी आदि पर्व आएंगे। 

हेमंत ऋतु का समापन और शिशिर ऋतु का आगमन 21 दिसंबर मध्य रात्रि से हो गया है जो 17 फरवरी तक रहेगा। 18 फरवरी से बसंत ऋतु का आगमन होगा। शीत ऋतु दो भागों में विभक्त है। हल्की गुलाबी ठंड हेमंत ऋतु तो तीव्र तथा तीखा जाड़ा है शिशिर। ऋतुओं ने हमारी परंपराओं को काफी प्रभावित किया है। सर्दी आते ही क्या हितकर है क्या नहीं, यह हमारे धर्मशास्त्र भी बताते हैं और आयुर्वेद भी। स्वास्थ्य की दृष्टि से उपयोगी बातों का वैज्ञानिक दृष्टिकोण तो होता ही है, धर्म उसे कर्तव्य के रूप में विहित कर देता है। 

इसलिए संक्रांति, लोहड़ी, पोंगल पर्व पर तिल प्रयोग विशेष बताया है। तिल-गुड़ से बने पदार्थ स्वास्थ्यकर होते हैं। धर्मशास्त्रों के अनुसार पौष और माघ मास में तिल और गुड़ का दान पुण्यकारक तथा सेवन हितकर होता है। 

शिशिर में वातावरण में शीतलता के साथ ही रूक्षता बढ़ जाती है। यह सूर्य का उत्तरायण काल होता है, इसमें शरीर का बल धीरे-धीरे घट जाता है। तिल विशेषतः अस्थि, त्वचा, केश व दांतों को मजबूत बनाता है। बादाम की अपेक्षा तिल में छः गुना से भी अधिक कैल्शियम है। इसीलिए इस ऋतु में आने वाले व्रत-त्योहार में तिल के सेवन करने के लिए कहा गया है। 

कहते हैं शीतकाल का खान पान वर्षभर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। शीतकाल के तीन-चार मासों में बनाए जाने वाले प्रमुख व्यंजनों में गोंद, मैथी, मगज के लड्डू और सौंठ की मिठाइयां प्रमुख हैं, जो स्वादिष्ट और सुपाच्य होती हैं तो स्वास्थ्य की दृष्टि से दवा का काम करती हैं। शिशिर में शीतल समीर की लहरें चलने लगती हैं। लोग ठंड से ठिठुरने लगते हैं। 

प्रचंड शीत से सूर्यनारायण की किरणों की प्रखरता मद्घिम हो जाती है। सूर्य किरणों का स्पर्श प्रिय लगने लगा है। अग्नि की ऊष्मा आकर्षित करने लगी है। शिशिरे स्वदंते वहितायः पवने प्रवाति...(मथुरानाथ शास्त्री) अर्थात शिशिर में जब बर्फीली हवा बहती है तो अलाव तापना मीठा लगता है। मकर संक्रांति तीव्र शीतकाल का पर्व माना जाता है। 
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