essay on shram ka mahatva in 250 words in hindi
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मनुष्य के पास श्रम के अतिरिक्त कोई वास्तविक सम्पत्ति नहीं है । यदि यह कहा जाये कि, श्रम ही जीवन है तो यह गलत न होगा । जीवन में श्रम अनिवार्य है । गीता में श्रीकृष्णा ने कर्म करने पर बल दिया है । मानव देह मिली है तो कर्म करना ही पड़ेगा ।
जो पुरुषार्थ करता है वह पुरुष है । यह सारा संसार बड़े-बड़े नगर, गगनचुंबी भवन, हवाई जहाज, रेलगाड़ियाँ, स्कूटर तथा अन्य कई प्रकार के वाहन, विशाल कारखाने, टी.वी. तथा सिनेमा आदि सभी मानव के पुरुषार्थ की कहानी कहते हैं ।
कर्म करना जीवन है तो कर्म का न करना मृत्यु । श्रम न करने से ही जीवन नर्क बनता है और कर्म करने से स्वर्ग । ईमानदारी से श्रम करने से मानव फरिश्ता कहलाता है और श्रम न करने से शैतान । जैसा कि, कहा भी गया है खाली दिमाग शैतान का घर होता है । श्रम दो प्रकार का होता है – शारीरिक तथा मानसिक । किसी वस्तु, अर्थ ( धन ) अथवा उद्देश्य की प्राप्ति के लिए किये गये प्रयत्न का नाम श्रम है ।
श्रम अपने आप में ही एक लक्ष्य है । श्रम करके चित्त प्रसन्न होता है । देह तंदरूस्त रहती है । व्यक्ति उन्नति करे अथवा न करे परिवार अथवा समाज में सम्मान मिलता है । किन्तु यह होता नहीं है कि व्यक्ति श्रम करे और वह उन्नति न करे । श्रम करने वाला व्यक्ति सदैव उन्नति करता है ।
बड़े-से-बड़े तेज और समर्थ व्यक्ति तनिक आलस्य से जीवन की दौड़ में पिछड़ जाते हैं किन्तु श्रम करने वाले व्यक्ति तनिक दुर्बल भी दौड़ में आगे निकल जाते हैं । इस सम्बन्ध में कछुए और खरगोश की कहानी को स्मरण किया जा सकता है । खरगोश तेज गति से चलता है । वह अपने तेज चलने पर बहुत गर्व करता है ।
सबको मालूम है कि कछुआ बहुत धीमी गति से चलता है । दोनों का दौड़ होती है । कछुआ लगातार चलता रहता है तथा परिणामस्वरूप गंतव्य पर पहले पहुँच जाता है । किन्तु खरगोश आलस्य करता है और पिछड़ जाता हें । श्रम करने वाला व्यक्ति कभी भी हारता नहीं है । मेहनत के बूते पर अति साधारण छात्र चकित करने वाले परिणाम दे जाते हैं ।
दूसरी ओर होनहार और मेधावी छात्र अपने आलस्य के कारण कुछ नहीं कर पाता । सेमुअल जॉनसन ने कहा है- ” जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता पूरे जन्म के श्रम द्वारा ही प्राप्त की जा सकती है । इससे कम मूल्य पर इसको खरीदा ही नहीं जा सकता है । ”
श्रम प्रत्येक मनुष्य जाति तथा राष्ट्र की उन्नति के लिए अनिवार्य है । मनुष्य जितना श्रम करता है उतनी ही उन्नति कर लेता है । हमारे देश में कई उद्योग घराने हैं । बिरला और टाटा के नाम को कौन नहीं जानता । उन्होंने साम्राज्य स्थापित कर रखे हैं ।
यह सब उनके श्रम का ही परिणाम है । बिरला मन्दिर देश के कई बडे शहरों में देखने को मिलते है । बिरला ने धन भी कमाया है और दान भी किया है । पंडित जवाहरलाल नेहरू तथा श्री लाल बहादुर शास्त्री अपने श्रम के कारण ही देश के प्रधानमन्त्री बन सके । आइंस्टीन ने श्रम किया और वे विश्व के सबसे महान वैज्ञानिक बन गए ।
अमरीका, रूस, जापान तथा इंग्लैण्ड ने श्रम के माध्यम से ही उन्नति की है और आज विश्व के सबसें समृद्ध देश बन गए हैं । श्रम से व्यक्ति का निर्माण होता है । श्रम से वह नेता बनता है । श्रम से वह अभिनेता बनता है । फिल्मी अभिनेताओं का जीवन बहुत सुन्दर और आकर्षक लगता है । हर कोई अभिनेता बनना चाहता है किन्तु अभिनेता बनना सरल नहीं है ।
एक अभिनेता का जीवन घोर तपस्या का जीवन होता है । कठिन श्रम के द्वारा ही धर्मेन्द्र, राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन सुपरस्टार बन सके । क्रिकेट खिलाड़ी सुनील गावस्कर तथा कपिलदेव ने भी कम परिश्रम नहीं किया । यहाँ तक कि साधु-संन्यासी भी श्रम एवं तपस्या करके ही ईश्वर से साक्षात्कार करते हैं ।
महात्मा बुद्ध ईसा मसीह और स्वामी दयानंद सरस्वती का जीवन श्रम से परिपूर्ण था । अत: यह कहना अनुचित न होगा कि श्रम के बिना कुछ भी कर पाना संभव नहीं है । किन्तु एक बात जो ध्यान देने योग्य है कि श्रम चाहे मानसिक हो या शारीरिक, श्रम है ।
hope that it will help you.....
जो पुरुषार्थ करता है वह पुरुष है । यह सारा संसार बड़े-बड़े नगर, गगनचुंबी भवन, हवाई जहाज, रेलगाड़ियाँ, स्कूटर तथा अन्य कई प्रकार के वाहन, विशाल कारखाने, टी.वी. तथा सिनेमा आदि सभी मानव के पुरुषार्थ की कहानी कहते हैं ।
कर्म करना जीवन है तो कर्म का न करना मृत्यु । श्रम न करने से ही जीवन नर्क बनता है और कर्म करने से स्वर्ग । ईमानदारी से श्रम करने से मानव फरिश्ता कहलाता है और श्रम न करने से शैतान । जैसा कि, कहा भी गया है खाली दिमाग शैतान का घर होता है । श्रम दो प्रकार का होता है – शारीरिक तथा मानसिक । किसी वस्तु, अर्थ ( धन ) अथवा उद्देश्य की प्राप्ति के लिए किये गये प्रयत्न का नाम श्रम है ।
श्रम अपने आप में ही एक लक्ष्य है । श्रम करके चित्त प्रसन्न होता है । देह तंदरूस्त रहती है । व्यक्ति उन्नति करे अथवा न करे परिवार अथवा समाज में सम्मान मिलता है । किन्तु यह होता नहीं है कि व्यक्ति श्रम करे और वह उन्नति न करे । श्रम करने वाला व्यक्ति सदैव उन्नति करता है ।
बड़े-से-बड़े तेज और समर्थ व्यक्ति तनिक आलस्य से जीवन की दौड़ में पिछड़ जाते हैं किन्तु श्रम करने वाले व्यक्ति तनिक दुर्बल भी दौड़ में आगे निकल जाते हैं । इस सम्बन्ध में कछुए और खरगोश की कहानी को स्मरण किया जा सकता है । खरगोश तेज गति से चलता है । वह अपने तेज चलने पर बहुत गर्व करता है ।
सबको मालूम है कि कछुआ बहुत धीमी गति से चलता है । दोनों का दौड़ होती है । कछुआ लगातार चलता रहता है तथा परिणामस्वरूप गंतव्य पर पहले पहुँच जाता है । किन्तु खरगोश आलस्य करता है और पिछड़ जाता हें । श्रम करने वाला व्यक्ति कभी भी हारता नहीं है । मेहनत के बूते पर अति साधारण छात्र चकित करने वाले परिणाम दे जाते हैं ।
दूसरी ओर होनहार और मेधावी छात्र अपने आलस्य के कारण कुछ नहीं कर पाता । सेमुअल जॉनसन ने कहा है- ” जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता पूरे जन्म के श्रम द्वारा ही प्राप्त की जा सकती है । इससे कम मूल्य पर इसको खरीदा ही नहीं जा सकता है । ”
श्रम प्रत्येक मनुष्य जाति तथा राष्ट्र की उन्नति के लिए अनिवार्य है । मनुष्य जितना श्रम करता है उतनी ही उन्नति कर लेता है । हमारे देश में कई उद्योग घराने हैं । बिरला और टाटा के नाम को कौन नहीं जानता । उन्होंने साम्राज्य स्थापित कर रखे हैं ।
यह सब उनके श्रम का ही परिणाम है । बिरला मन्दिर देश के कई बडे शहरों में देखने को मिलते है । बिरला ने धन भी कमाया है और दान भी किया है । पंडित जवाहरलाल नेहरू तथा श्री लाल बहादुर शास्त्री अपने श्रम के कारण ही देश के प्रधानमन्त्री बन सके । आइंस्टीन ने श्रम किया और वे विश्व के सबसे महान वैज्ञानिक बन गए ।
अमरीका, रूस, जापान तथा इंग्लैण्ड ने श्रम के माध्यम से ही उन्नति की है और आज विश्व के सबसें समृद्ध देश बन गए हैं । श्रम से व्यक्ति का निर्माण होता है । श्रम से वह नेता बनता है । श्रम से वह अभिनेता बनता है । फिल्मी अभिनेताओं का जीवन बहुत सुन्दर और आकर्षक लगता है । हर कोई अभिनेता बनना चाहता है किन्तु अभिनेता बनना सरल नहीं है ।
एक अभिनेता का जीवन घोर तपस्या का जीवन होता है । कठिन श्रम के द्वारा ही धर्मेन्द्र, राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन सुपरस्टार बन सके । क्रिकेट खिलाड़ी सुनील गावस्कर तथा कपिलदेव ने भी कम परिश्रम नहीं किया । यहाँ तक कि साधु-संन्यासी भी श्रम एवं तपस्या करके ही ईश्वर से साक्षात्कार करते हैं ।
महात्मा बुद्ध ईसा मसीह और स्वामी दयानंद सरस्वती का जीवन श्रम से परिपूर्ण था । अत: यह कहना अनुचित न होगा कि श्रम के बिना कुछ भी कर पाना संभव नहीं है । किन्तु एक बात जो ध्यान देने योग्य है कि श्रम चाहे मानसिक हो या शारीरिक, श्रम है ।
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