Essay on त्योहारों का देश भारत | festivals in india | Tyoharo ka desh bharat
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जीवन में एकरसता और बोरियत को दूर करने के लिए हर आयुवर्ग के लोग अपना-अपना मनोरंजन करते है| पर त्यौहार एक ऐसा माध्यम है जो न सिर्फ जीवन को रुचिकर बना देता है वरन पारिवारिक और सामाजिक सौहार्द भी कायम करता है| ये हर आयुवर्ग को समान रूप से उत्साहित करता है| भारत अनेक प्रकार की जातियों, धर्मों, संस्कृतियों का संगम स्थल है| यहाँ ईद के दिन हिन्दू मित्र मुस्लिम मित्रों के यहाँ सिवइयों का रस लेते है तो मुस्लिम दीपावली- होली को हिन्दू मित्रों को मुबारकबाद देते है| राष्ट्रीय त्यौहार तो हर संकीर्णता से ऊपर उठे हुए है| पूरा राष्ट्र मिलजुलकर स्वतन्त्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, युवा दिवस मनाते हैं| हर त्यौहार के पीछे कोई न कोई उपयोगी सन्देश जरूर निहित रहता है| होलिका दहन हो या विजयादशमी, क्रिसमस हो या नवरात्रि सभी बुराई पर अच्छाई की विजय का सन्देश देते है| बुराई कितनी भी प्रबल और शक्तिशाली हो अंततः उसे मिटना ही पड़ता है|हम त्यौहार पर ये संकल्प ले सकते है कि हम भी अपने भीतर संचित बुरी आदते व बुरी भावना का त्याग करेंगे और आदर्श व्यक्तित्व बनने का प्रयास करेंगे| त्यौहारों के पीछे वैज्ञानिक तथ्य भी निहित होते हैं| मिट्टी के दीये जलाने से, कंडे जलाने से पर्यावरण की शुद्धि होती है| वृक्षों की पूजा करने के पीछे उनका विस्तार करनेकी भावना रहती है| ये प्रकृति का आभार व्यक्त करने कत्रीका है| पोंगल व ओणम जैसे त्यौहार फसलों की पूर्णता की ख़ुशी मे मनाये जाते है| देवतओं को भोग अर्पित करके दान देने के पीछे ये सन्देश है कि हमें अपने लाभ का अकेले उपभोग नहीं करना चाहिए| सबको उनका हिस्सा देकर मिल-बांटकर खाना चाहिए| मकर संक्रांति को पशु- पक्षियों को खिलाने का और जरूरतमंद लोगों को दान देने के रिवाज के पीछे भी परोपकार की भावना ही प्रबल है| त्यौहारों के आगमन से पूर्व हम घर की सफाई करते है साथ ही ये भावना करते है कि हमारे मन में भी कोई विकार न रहे| हमारा मन भी स्वच्छ रहे तभी वहां भगवान का आगमन होगा| जैन धर्म का प्रसिद्ध त्यौहार है क्षमापना| इसमें सभी जन एक दुसरे से वर्ष भर में की गई जनि-अनजानी भूलों के लिए क्षमा मांगते है और एक दुसरे के प्रति अगर कोई वैमनस्य हो तो वो त्याग देते है| हालाँकि हर त्यौहार इन्ही शुभ भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते है पर कुछ विकारग्रस्त मनुष्यों ने कुरीतियाँ चलाकर मूल भावना को नष्ट करने का कुत्सित प्रयास किया है| उदाहरणार्थ होली पर केमिकल और घातक रंगो का जबरदस्ती प्रयोग करना, दीपावली पर घातक पटाखे चलाकर पर्यावरण को नुकसान पहुचाना और ध्वनि प्रदूषण फैलाना| दीपावली पर जुआ खेलना, महंगे उपहारों का आदान-प्रदान करना तथा हर त्यौहार पर खूब खर्च करके समाज में दिखावे की प्रतियोगिता को जन्म देना|निष्कर्षत: हमारा नैतिक कर्तव्य है कि हम इन बुराइयों का बहिष्कार करें और त्यौहार अपने पारम्परिक तरीके से मनाये| बाहरी दिखावे से बेहतर होगा हम अपने मन को उत्फुल्ल बनायें|
इसके बावजूद मनुष्य का सर्वांगीण विकास तब तक संभव नहीं है जब तक कि बौद्धिक विकास के साथ-साथ उसमें भावनात्मक विकास न हो । हमारे देश के त्योहार, हमारे पर्व, मनुष्य के भावनात्मक विकास में सदैव सहभागी रहे हैं ।
ये त्योहार करुणा, दया, सरलता, आतिथ्य सत्कार, पास्परिक प्रेम एवं सद्भावना तथा परोपकार जैसे नैतिक गुणों का मनुष्य में विकास करते हैं । इन्हीं नैतिक मूल्यों की अवधारणा से मनुष्य को चारित्रिक अथवा भावनात्मक बल प्रदान होता है ।