India Languages, asked by irondilu, 11 months ago

essay on vidyarthi rashtriyam

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Answered by DevilJyoti
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विद्यार्थी का अर्थ है-विद्या + अर्थी अर्थात् विद्या का इच्छुक या विद्या को प्राप्त करने वाला। विद्या ग्रहण करना विद्यार्थी का धर्म और कर्तव्य है। विद्या-ग्रहण करना ही विद्या का धर्म और कर्त्तव्य नहीं है, अपितु इस विद्या को समाज और राष्ट्र के प्रति उपयोग करना भी विद्यार्थी का धर्म और कर्तव्य है। विद्यार्थी का जीवन एक पुनीत संस्कार और सभ्यता का जीवन होता है। वह इस अवधि में अपने अन्दर दिव्य संस्कारों को ज्योति जलाता है। ये संस्कार ही धर्म, समाज और राष्ट्र के प्रति कर्त्तव्यबद्ध होने की उसे प्रेरणा दिया करते हैं। इनसे प्रेरित होकर ही विद्यार्थी अपने प्राणों का समर्पण और उत्सर्ग किया करती है। इस प्रकार से दिव्य संस्कार का विकास प्राप्त करके विद्यार्थी समाज और राष्ट्र के प्रति अपना कोई-न-कोई योगदान करता ही रहता है।

राष्ट्र के प्रति विद्यार्थी का योगदान बहुत बड़ा और विस्तृत भी है। वे अपने योगदान के द्वारा राष्ट्र को उन्नत और समृद्ध बना सकते हैं। राष्ट्र के प्रति विद्यार्थी तभी योगदान कर सकता है, जब वह अपनी निष्ठा और सत्याचरण को श्रेष्ठ और महान् बनाकर इस कार्य क्षेत्र में उतरता है। राष्ट्र के प्रति विद्यार्थियों का कर्म-क्षेत्र बहुत ही अद्भुत और अनुपम है; क्योंकि वह शिक्षा-ग्रहण करते हुए भी समाज और राष्ट्र के हित के प्रति अपना अधिक-से-अधिक योगदान दे सकता है। यह सोचते हुए यह विचित्र आभास होता है कि शिक्षा और राजनीति दोनों पहलओं को लेकर विद्यार्थी कैसे आगे बढ़ सकता है, क्योंकि विद्या और राजनीति का सम्बन्ध परस्पर भिन्न और विपरीत है। अतएव विद्यार्थी का अपने समाज और राष्ट्र के प्रति योगदान देना और इसका निर्वाह करना अत्यन्त विकट और देकर कार्य है। फिर एक समाज चिन्तक और राष्ट्रभक्त विद्यार्थी विद्याध्ययन करते हुए भी अपना कोई-न-कोई योगदान अवश्य दे सकता है। अगर ऐसा कोई विद्यार्थी करने में अपनी योग्यता का परिचय देता है, तो निश्चय ही वह महान् राष्ट्र-धर्मी, राष्ट्र का नियामक और राष्ट्र नायक हो सकता है।

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