Essay on vigyan ka manav vikas mein yogdan
Answers
इसके अतिरिक्त दुनिया के एक कोने पर बैठे हुए व्यक्ति दुनिया के दूसरे छोर तक की यात्रा वायुयान के माध्यम से मात्र 24 घंटे के भीतर ही तय कर सकते हैं ।
इस प्रकार हम देखते हैं कि प्राचीन काल के मानवों की तुलना में आधुनिक मानव के रहन-सहन व जीवन-यापन आदि के तरीकों में अभूतपूर्व परिवर्तन आया है । मनुष्य समय के साथ कल्पनाओं की अपनी अनेक उड़ानों को यथार्थ रूप देने में सक्षम हुआ है ।
विज्ञान के नित नए आविष्कारों से मानव जीवन में और भी अधिक सुखद परिवर्तन देखने को मिल रहे हैं । विज्ञान के क्षेत्र में उन्नति मानव जीवन के उत्थान का भी पर्याय बन गई है । भविष्य के प्रारूप की व्याख्या तो कोई भी व्यक्ति विश्वसनीय रूप में नहीं कर सकता है परंतु वर्तमान को नि:संदेह विज्ञान का ही युग कहा जा सकता है । विज्ञान आज मानव जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है ।
Explanation:
विज्ञान ने मानव-जीवन को पूरी तरह बदल डाला है। हमारे पहनने के वस्त्रों का निर्माण कारखानों में होता है। जिन मशीनों का हम दैनिक जीवन में उपयोग करते हैं वे विश्व के अनेक भागों में निर्मित होती हैं। कुकर, कूलर, फ्रिज, रेडियो सेट, टी.वी., कैमरा, टेलीफोन, बेतार प्रणाली, दूरबीन और सूक्ष्मदर्शी तथा इसी प्रकार के अन्य अनेक उपकरण आज मानव सुख-सुविधा के स्रोत बन चुके हैं। मनुष्य अब हजारों मील दूर बैठे सम्बन्धियों और मित्रों से बातचीत कर सकता है। ग्रहों-उपग्रहों के चित्र, ब्रह्माण्ड के रास्ते इलेक्ट्रॉनिक पद्धति के कैमरों द्वारा हम पृथ्वीवासियों को देखने को मिल चुके हैं। पृथ्वी का निवासी करोड़ों मील दूर ब्रह्माण्ड में स्थित मंगल ग्रह की सतह को पृथ्वी पर से ही देख सकता है।
बसों, जलयानों, वायुयानों, स्कूटरों और यहां तक साइकिलों ने भी दूरी को काफी हद तक कम कर दिया है। लोग दिल्ली से न्यूयार्क चन्द घण्टों में पहुंच जाते हैं।
हमें ज्ञात है कि मध्यकाल में व्यापारियों के लम्बे-चौड़े काफिले राजस्थान और ईरान के रेगिस्तानों को पार करके ग्रीस और तुर्की जैसे दूरस्थ स्थानों को जाया करते थे। अपने माल को बेचने के लिये मनुष्य हजारों मील की यात्रा पैदल या सवारी वाले जानवरों द्वारा किया करते थे। उस समय नदियों व समुद्रों की यात्रा के लिये केवल नावों का प्रचलन था, किन्तु आज आधुनिक जलयानों द्वारा हजारों टन माल आसानी से दूसरे देशों को भेजा जाता है।
विज्ञान के द्वारा अनेकानेक किस्मों का प्रायोगिक ज्ञान हमें सुलभ हो चुका है। विशाल प्रयोगशालाओं में अनेकानेक विषयों से सम्बन्धित प्रयोग किए जाते हैं और इस प्रकार शोध एवं अनुसंधान निर्बाध गति से हो रहे हैं। हमारे देश में भी कई अनुसंधान प्रयोगशालाएं हैं। एक और तो मानवता के कल्याण हेतु अनुसंधान किया जाता है और दूसरी ओर अति महाशक्तियां भावी युद्धों से निबटने के लिये अण्वास्त्रों के ढेर लगाती चली जा रही हैं।
ऐसे-ऐसे अण्वास्त्र अन्य प्रकार के बम बनाये जा चुके हैं जो पल-भर में बड़े-बड़े नगरों को नष्ट कर सकते हैं। जापान स्थित हिरोशिमा और नागासाकी पलक झपकते ही राख के ढेर में बदल गये थे। यह घटना दूसरे विश्व युद्ध के समय (1945) की है, जब उन नगरों पर अण्वास्त्रों का प्रयोग किया गया था। अब विश्व समुदाय परमाणु अस्त्रों द्वारा होने वाले विनाश के प्रति जागरूक है और संयुक्त राष्ट्र संघ तथा अन्य कई संगठन इस बात के प्रयत्न कर रहे हैं कि आणविक प्रतिस्पर्धा पर रोक लगाई जा सके।
भारत विश्व शांति चाहता है और उसकी यह कामना है कि सभी देशों को अपने परमाणविक हथियार नष्ट कर देने चाहिये या कम-से-कम भविष्य में उनके बनाने पर रोक लगानी चाहिये।
इस प्रकार एक ओर तो विज्ञान के माध्यम से जीवनोपयोगी वस्तुओं का निर्माण करके मानव निरन्तर विकास की ओर अग्रसर है और दूसरी ओर परमाणविक व अन्तरिक्ष में मार करने वाले अस्त्रों के निर्माण में प्रयत्नशील रहकर मानव जाति के नाश में मदद कर रहा है।
और यही चरम परणति नहीं है। मानव को प्रभावित करने सम्बन्धी विज्ञान के . योगदान का एक पक्ष यह भी है कि लोग धन का बहुत अधिक लोभ करने लगे हैं। ने अपने पर्वजों की तरह नहीं हैं जो सादा जीवन और उच्च विचार में विश्वास रखते थे। वे धार्मिक थे और ईश्वर को सर्व-शक्तिमान मानते थे। वे परमात्मा से डरते थे। किन्तु आज का आधुनिक मानव उन महान् जीवन मूल्यों को प्रायः भूल चुका है।
विज्ञान ने उसके विचारों को दूर तक प्रभावित किया है। वह पहले की तरह अब एक चिन्तामुक्त इंसान नहीं है। बनावटी जिन्दगी में उसका विश्वास बढ़ता जा रहा है और जीवन की बाह्य सुख-सुविधाओं को ही वह ऐश्वर्य मानने लगा है। इस प्रकार हम देखते हैं कि विज्ञान ने प्राचीन जीवन मूल्यों के सन्दर्भ में अत्यन्त घातक भूमिका निभाई है।
अगर मनुष्य मानव जाति के भविष्य के बारे में सोचना शुरू कर दे तो उसे विनाश के मार्ग को छोड़ना ही होगा। यदि वह एक विवेकशील मनुष्य की तरह काम करने लगे और अण्वास्त्रों का निर्माण बन्द कर दे तो धरती फिर से स्वर्ग बन सकती है, अन्यथा विनाश का यह चरम रूप पृथ्वी को मानवविहीन और जीवनविहीन बना देगा। इस प्रकार विज्ञान एक ओर तो वरदान की भूमिका निभाता है, दूसरी ओर यदि इसका दुरुपयोग किया जाए, तो यह अभिशाप बन जाता है।