India Languages, asked by Jamespaul4013, 8 months ago

एतस्मिन् अन्तरे गुहायाः स्वामी दधिपुच्छः नाम शृगालः समागच्छत्। स च यावत् पश्यति तावत् सिंहपदपद्धतिः गुहायां प्रविष्टा दृश्यते, न च बहिरागता। शृगालः अचिन्तयत्-"अहो विनष्टोऽस्मि। नूनम् अस्मिन् बिले सिंहः अस्तीति तर्कयामि। तत् किं करवाणि?’ एवं विचिन्त्य दूरस्थः रवं कर्तुमारब्धः-"भो बिल! भो बिल! किं न स्मरसि, यन्मया त्वया सह समयः कृतोऽस्ति यत् यदाहं बाह्यतः गुहा उच्चैः शृगालम् आह्वयत्। अनेन अन्येऽपि पशवः भयभीताः अभवन्। शृगालोऽपि ततः दूरं पलायमानः इममपठत्|

शब्दार्थ: तत्-तब (तो)। आह्वानम्-पुकार (बुलावा)। प्रविश्य-प्रवेश करके। मे-मेरा। भोज्यम्-भोजन योग्य (पदार्थ)। इत्थं-इस तरह। विचार्य-विचार करके। सहसा-एकाएक। उच्चगर्जन-ज़ोर की गर्जना की। प्रतिध्वनिना-पूँज (किसी वस्तु से टकराकर वापस आई आवाज)। उच्चैः-जोर से। आह्वयत्-पुकारा। भयभीताः-भय से व्याकुल। ततः-वहाँ से। पलायमानः-भागता हुआ। इमम्-इस (को)।

सरलार्थ : तो (तब) मैं इसको पुकारता हूँ। इस तरह वह बिल में प्रवेश करके मेरा भोजन (शिकार) बन जाएगा। इस प्रकार सोचकर शेर ने अचानक गीदड़ को पुकारा। शेर की गर्जना की गूंज (प्रतिध्वनि) से वह गुफा ज़ोर से गीदड़ को पुकारने लगी। इससे दूसरे पशु भी डर से व्याकुल हो गए। गीदड़ भी वहाँ से दूर भागते हुए इस (श्लोक) को पढ़ने लगा

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Answered by jashan3333
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please explain it can't understand

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