explain indias climate in hindi
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भारत की जलवायु
जलवायुः किसी स्थान अथवा देश में लम्बे समय के तापमान, वर्षा, वायुमण्डलीय दबाव तथा पवनों की दिशा व वेग का अध्ययन व विश्लेषण जलावयु कहलाता है। सम्पूर्ण भारत को जलवायु की द्वाष्टि से उष्ण कटिबंधीय मानसूनी जलवायु वाला देश माना जाता है।
भारत में उष्णकटिबंधीय मानसूनी जलवायु पायी जाती है। मानसून शब्द की उत्पति अरबी भाषा के ‘ मौसिम’ शब्द से हुई है।
मौसिम शब्द का अर्थ : पवनों की दिशा का मौसम के अनुसार उल्ट जाना होता है। भारत में अरब सगार एवं बंगाल की खाडी से चलने वाली हवाओं की दिशा में ऋतुत् परिवर्तन हो जाता है, इसी संदर्भ में भारतीय जलवायु को मानसूनी जलवायु कहा जाता है।
भारतीय जलवायु को प्रभावित करने वाले कारकः
¡) स्थिति एवं अक्षांशीय विस्तारः – भारत उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित है एवं कर्क रेखा भारत के लगभग मध्य से होकर गुजरती है अतः यहाँ का तापमान उच्च रहता है। ये भारत को उष्णकाटिबंधीय जलवायु वाला क्षेत्र बनाती है।
ii) समुद्र से दूरी : भारत तीन ओर से समुद्र से घिरा हुआ है भारत के पीश्चमी तट, पूर्वी तट एवं दक्षिण भारतीय क्षेत्र पर समुद्रीय जलवायु का प्रभाव पड़ता है किन्तु उत्तरी भारत, उत्तरी पश्चिमी भारत एवं उत्तरी – पूर्वी भारत पर समुंद्री जलवायु का प्रभाव नगण्य है।
iii) उत्तरी पर्वतीय श्रेणिया : हिमालयी क्षेत्र भारत की जलवायु को प्रभावित करता है यह मानसून की अवधि में भारतीय क्षेत्र में वर्षा का कारण भी बनता है तथा शीत ऋतु में तिब्बतीय क्षेत्र से आने वाली अत्यंत शीत लहरों में रुकावट पैदा कर भारत को शीत लहर के प्रभावों से बचाने के लिए आवरण या दीवार की भूमिका निभाता है।
iv) भू – आकृति: – भारत की भू- आकृतिक संरचना पहाड़, पठार, मैदान एवं रेगिस्तान भी भारत की जलवायु को प्रभावित करते हैं। अरावली पर्वत माला का पश्चिमी भाग एवं पश्चिमी घाट का पूर्वी भाग आदि वर्षा की कम मात्रा प्राप्त करने वाले क्षेत्र हैं।
V) मानसूनी हवाएं : मानसूनी हवाएं भी भारतीय जलवायु को प्रभावित करती है हवाओं में आर्द्रता की मात्रा, हवाओं की दिशा एवं गति आदि।
VI) अर्ध्व वायु संचरण ( जेट स्ट्रीम ) : जेट स्ट्रीम ऊपरी शोभमणल में आम तौर पर मध्य अक्षांश में भूमि से 12 Km ऊपर पश्चिम से पूर्व तीव्र गति से चलने वाली एक धारा का नाम है। इसकी गीत सामान्यत 150 – 300 Kmp की होती है।
Vii) ऊष्ण कटिबंधीय चक्रवात और पशिचम विक्षोभ :-उष्ण कटिबंधीय चक्रवात का निर्माण बंगाल की खाड़ी और अरब सगर में होता है। और यह प्रायद्वीपीय भारत के एक बड़े भू भाग को प्रभावित करता है।
Vii) दक्षिणी दोलन : – जब कभी भी हिन्द भी हिन्द महासागर के ऊपरी दवाब अधिक हो जाता है, तब प्रशांत महासागर के ऊपर निम्न दबाव बनता है। और जब प्रशांत महासागर के ऊपर उच्च दबाव की सृष्टि होती है तब हिन्द महासागर के ऊपर निम्न दबाव बनता है। दोनों महासागरों के इस उच्च एव निम्न वायु दाबीय अन्तः सम्बन्ध को ही दक्षिणी दोलन कहते हैं।
ix-एल निनो : इसके प्रभाव के कारण भारत में कम वर्षा होती है।
x- ला – नीना : यह एल – नीनों की विपरीत संकल्पना है। इसके प्रभाव में भारत में वर्षा की मात्रा अच्छी रहती है।
कोपेन का जलवायु वर्गीकरण : कोपेन ने भारतीय जलवायुवीय प्रदेशों को 9 भागों में विभाजित किया है –
लघु कालीन शीत ऋतु सहित मानसूनी जलवायु (AMW प्रकार) : – ऐसी जलवायु मुम्बई के दक्षिण में पशिचमी तटीय क्षेत्रों में पायी जाती है। इन क्षेत्रों में दक्षिण – पश्चिम मानसून से ग्रीष्म ऋतु में 250 – 300 cm से अधिक वर्षा होती है। इस जलवायु प्रदेश में आने वाले क्षेत्र –
– मालावार, एवं कोंकण तट, गोवा के दक्षिण तथा पशिचमी घाट पर्वत की पशिचमी ढाल।
– उत्तर पूर्वी भारत
– अंडमान – निकोबार द्वीप समूह
उष्ण कतिबंधीय सवाना जलवायु प्रदेश ( AW प्रकार ) : – यह जलवायु कोरोमण्डल एवं मालावार तटीय क्षेत्रों के अलावा प्रायद्वीपीय पठार के अधिकांश भागों में पायी जाती है। इस जलवायु क्षेत्र की ऊपरी सीमा लगभग कर्क रेखा से मिलती है अर्थात् यह जलवायु कर्क रेखा के दक्षिण में स्थित प्रायद्वीपीय भारत के अधिकांश भगों में पायी जाती है। यहाँ सलाना हर प्रकार की वनस्पति पायी जाती है। इस प्रकार के प्रदेश में ग्रीष्मकाल मे दक्षिण – पशिचम मानसून से लगभग 75 Cm वर्षा होती है। शीत काल सूखा रहता है।
3.शुष्क ग्रीष्म ऋतु, आर्द्र शीत ऋतु सहित मानसूनी जलवायु ( AS प्रकार) : यह वह प्रदेश है जहाँ शीतकाल में वर्षा होती है और ग्रीष्म ऋतु सूखा रहता है। यहाँ शीत ऋतु में उत्तर – पूर्वी मानसून ( लौटते हुए मानसून) से अधिकांश वर्षा होती है। वर्षा ऋतु की मात्रा शीत काल मे लगभग 75-100 तक होती है। इसके अन्तर्गत तटीय तमिलनाडु और आन्ध्र प्रदेश के सीमावर्ती प्रदेश आते हैं।
4.अर्द्ध शुष्क स्टेपी जलवायु ( Bshw प्रकार) : यहाँ वर्षा ग्रीष्मकाल में 30 – 60 cm होती है। शीत काल में वर्षा का अभाव रहता है। यहाँ स्टेपी प्रकार की वनस्पति पायी जाती हैं। इसके अन्तर्गत – मध्यवर्ती राजस्थान, परिचमी पंजाब, हरियाणा, गुजरात के सीमावर्ती क्षेत्र एवं पश्चिमी घाट का वृष्टि छाया प्रदेश। शामिल हैँ।
उष्ण मरूस्थलीय जलवायु (Bwhw): यहाँ वर्षा काफी कम होती है ( 30 cm से भी कम ), तापमान अधिक रहता है। यहाँ प्राकृतिक वनस्पति कम ( नगण्य ) होती हैं एवं कांटेदार मरूस्थलयी वनस्पति पायी जाती है इस प्रदेश के अंर्तगत – राजस्थान का पशिचमी क्षेत्र, उत्तरी गुजरात, एवं हरियाणा का दक्षिणी भाग शामिल हैं।
जलवायुः किसी स्थान अथवा देश में लम्बे समय के तापमान, वर्षा, वायुमण्डलीय दबाव तथा पवनों की दिशा व वेग का अध्ययन व विश्लेषण जलावयु कहलाता है। सम्पूर्ण भारत को जलवायु की द्वाष्टि से उष्ण कटिबंधीय मानसूनी जलवायु वाला देश माना जाता है।
भारत में उष्णकटिबंधीय मानसूनी जलवायु पायी जाती है। मानसून शब्द की उत्पति अरबी भाषा के ‘ मौसिम’ शब्द से हुई है।
मौसिम शब्द का अर्थ : पवनों की दिशा का मौसम के अनुसार उल्ट जाना होता है। भारत में अरब सगार एवं बंगाल की खाडी से चलने वाली हवाओं की दिशा में ऋतुत् परिवर्तन हो जाता है, इसी संदर्भ में भारतीय जलवायु को मानसूनी जलवायु कहा जाता है।
भारतीय जलवायु को प्रभावित करने वाले कारकः
¡) स्थिति एवं अक्षांशीय विस्तारः – भारत उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित है एवं कर्क रेखा भारत के लगभग मध्य से होकर गुजरती है अतः यहाँ का तापमान उच्च रहता है। ये भारत को उष्णकाटिबंधीय जलवायु वाला क्षेत्र बनाती है।
ii) समुद्र से दूरी : भारत तीन ओर से समुद्र से घिरा हुआ है भारत के पीश्चमी तट, पूर्वी तट एवं दक्षिण भारतीय क्षेत्र पर समुद्रीय जलवायु का प्रभाव पड़ता है किन्तु उत्तरी भारत, उत्तरी पश्चिमी भारत एवं उत्तरी – पूर्वी भारत पर समुंद्री जलवायु का प्रभाव नगण्य है।
iii) उत्तरी पर्वतीय श्रेणिया : हिमालयी क्षेत्र भारत की जलवायु को प्रभावित करता है यह मानसून की अवधि में भारतीय क्षेत्र में वर्षा का कारण भी बनता है तथा शीत ऋतु में तिब्बतीय क्षेत्र से आने वाली अत्यंत शीत लहरों में रुकावट पैदा कर भारत को शीत लहर के प्रभावों से बचाने के लिए आवरण या दीवार की भूमिका निभाता है।
iv) भू – आकृति: – भारत की भू- आकृतिक संरचना पहाड़, पठार, मैदान एवं रेगिस्तान भी भारत की जलवायु को प्रभावित करते हैं। अरावली पर्वत माला का पश्चिमी भाग एवं पश्चिमी घाट का पूर्वी भाग आदि वर्षा की कम मात्रा प्राप्त करने वाले क्षेत्र हैं।
V) मानसूनी हवाएं : मानसूनी हवाएं भी भारतीय जलवायु को प्रभावित करती है हवाओं में आर्द्रता की मात्रा, हवाओं की दिशा एवं गति आदि।
VI) अर्ध्व वायु संचरण ( जेट स्ट्रीम ) : जेट स्ट्रीम ऊपरी शोभमणल में आम तौर पर मध्य अक्षांश में भूमि से 12 Km ऊपर पश्चिम से पूर्व तीव्र गति से चलने वाली एक धारा का नाम है। इसकी गीत सामान्यत 150 – 300 Kmp की होती है।
Vii) ऊष्ण कटिबंधीय चक्रवात और पशिचम विक्षोभ :-उष्ण कटिबंधीय चक्रवात का निर्माण बंगाल की खाड़ी और अरब सगर में होता है। और यह प्रायद्वीपीय भारत के एक बड़े भू भाग को प्रभावित करता है।
Vii) दक्षिणी दोलन : – जब कभी भी हिन्द भी हिन्द महासागर के ऊपरी दवाब अधिक हो जाता है, तब प्रशांत महासागर के ऊपर निम्न दबाव बनता है। और जब प्रशांत महासागर के ऊपर उच्च दबाव की सृष्टि होती है तब हिन्द महासागर के ऊपर निम्न दबाव बनता है। दोनों महासागरों के इस उच्च एव निम्न वायु दाबीय अन्तः सम्बन्ध को ही दक्षिणी दोलन कहते हैं।
ix-एल निनो : इसके प्रभाव के कारण भारत में कम वर्षा होती है।
x- ला – नीना : यह एल – नीनों की विपरीत संकल्पना है। इसके प्रभाव में भारत में वर्षा की मात्रा अच्छी रहती है।
कोपेन का जलवायु वर्गीकरण : कोपेन ने भारतीय जलवायुवीय प्रदेशों को 9 भागों में विभाजित किया है –
लघु कालीन शीत ऋतु सहित मानसूनी जलवायु (AMW प्रकार) : – ऐसी जलवायु मुम्बई के दक्षिण में पशिचमी तटीय क्षेत्रों में पायी जाती है। इन क्षेत्रों में दक्षिण – पश्चिम मानसून से ग्रीष्म ऋतु में 250 – 300 cm से अधिक वर्षा होती है। इस जलवायु प्रदेश में आने वाले क्षेत्र –
– मालावार, एवं कोंकण तट, गोवा के दक्षिण तथा पशिचमी घाट पर्वत की पशिचमी ढाल।
– उत्तर पूर्वी भारत
– अंडमान – निकोबार द्वीप समूह
उष्ण कतिबंधीय सवाना जलवायु प्रदेश ( AW प्रकार ) : – यह जलवायु कोरोमण्डल एवं मालावार तटीय क्षेत्रों के अलावा प्रायद्वीपीय पठार के अधिकांश भागों में पायी जाती है। इस जलवायु क्षेत्र की ऊपरी सीमा लगभग कर्क रेखा से मिलती है अर्थात् यह जलवायु कर्क रेखा के दक्षिण में स्थित प्रायद्वीपीय भारत के अधिकांश भगों में पायी जाती है। यहाँ सलाना हर प्रकार की वनस्पति पायी जाती है। इस प्रकार के प्रदेश में ग्रीष्मकाल मे दक्षिण – पशिचम मानसून से लगभग 75 Cm वर्षा होती है। शीत काल सूखा रहता है।
3.शुष्क ग्रीष्म ऋतु, आर्द्र शीत ऋतु सहित मानसूनी जलवायु ( AS प्रकार) : यह वह प्रदेश है जहाँ शीतकाल में वर्षा होती है और ग्रीष्म ऋतु सूखा रहता है। यहाँ शीत ऋतु में उत्तर – पूर्वी मानसून ( लौटते हुए मानसून) से अधिकांश वर्षा होती है। वर्षा ऋतु की मात्रा शीत काल मे लगभग 75-100 तक होती है। इसके अन्तर्गत तटीय तमिलनाडु और आन्ध्र प्रदेश के सीमावर्ती प्रदेश आते हैं।
4.अर्द्ध शुष्क स्टेपी जलवायु ( Bshw प्रकार) : यहाँ वर्षा ग्रीष्मकाल में 30 – 60 cm होती है। शीत काल में वर्षा का अभाव रहता है। यहाँ स्टेपी प्रकार की वनस्पति पायी जाती हैं। इसके अन्तर्गत – मध्यवर्ती राजस्थान, परिचमी पंजाब, हरियाणा, गुजरात के सीमावर्ती क्षेत्र एवं पश्चिमी घाट का वृष्टि छाया प्रदेश। शामिल हैँ।
उष्ण मरूस्थलीय जलवायु (Bwhw): यहाँ वर्षा काफी कम होती है ( 30 cm से भी कम ), तापमान अधिक रहता है। यहाँ प्राकृतिक वनस्पति कम ( नगण्य ) होती हैं एवं कांटेदार मरूस्थलयी वनस्पति पायी जाती है इस प्रदेश के अंर्तगत – राजस्थान का पशिचमी क्षेत्र, उत्तरी गुजरात, एवं हरियाणा का दक्षिणी भाग शामिल हैं।
nikhi786:
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