Explain phases of formation of deccan trap. in geography in hindi
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दक्कन का पठार (डेक्कन ट्रैप) का निर्माण दो विस्फोटों के साथ हुआ था: अध्ययन
एक नए अध्ययन से पता चला है कि भारत के डेक्कन ट्रैप, ज्वालामुखी घटनाओं से उत्पन्न दुनिया की सबसे बड़ी आकृतियों में से एक, का निर्माण दो अलग अलग कलंगियों के विस्फोट के कारण हुआ है। कनाडा के क्यूबेक विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने भारत में 60 लाख वर्ष से भी अधिक समय से पहले हुई घटनाओं का चित्रण एक कंप्यूटर सिमुलेशन के जरिये किया है।
इसके निर्माण में अत्यधिक लावा होने के कारण इसने वैज्ञानिकों को अपनी ओर आकर्षित किया है क्योंकि शोधकर्ताओं के अनुसार यह एक विस्फोट से निकले लावा से कहीं अधिक है।
पिछले अध्ययनों से यह पाया गया था कि यह 66 लाख वर्ष पहले एक कलंगी में विस्फोट होने करने के कारण अस्तित्व में आया जोकि अब हिन्द महासागर में रीयूनियन द्वीप के नीचे सीधे निहित है। विस्फोट की घटनाओं जिन्होंने डेक्कन ट्रैप का निर्माण किया, का ऐतिहासिक महत्व काफी अधिक है क्योंकि अधिकतर वैज्ञानिकों का मानना है कि यह घटना डायनासोरों के पतन का कारण बनी।
दक्कन का पठार:
दक्कन का पठार सतपुड़ा, महादेव तथा मैकाल श्रृंखला से लेकर नीलगिरी पर्वत के बीच अवस्थित है। इसकी औसत ऊँचाई 300-900 मी. के बीच है। इसे पुनः तीन पठारों में विभाजित किया गया है। महाराष्ट्र का पठार (काली मृदा), आंध्रप्रदेश का पठार, जिसे ‘आंध्रा प्लेटो’ कहते हैं । यह धात्विक खनिजों के लिए प्रसिद्ध है।
ज्वालामुखी से निकले बेसाल्ट की कई क्रमिक परतों को ट्रैप कहा जाता है । महाराष्ट्र में सर्वप्रथम क्रिटैशियस काल में दरारी उद्गार से बेसाल्ट का जमाव हुआ । इस बेसाल्ट परत के ऊपर अपक्षय के कारण काली मिट्टी बढ़ी, जिस पर वनस्पति एवं जीवों का विकास हुआ । इयोसीन काल में पुनः ज्वालामुखी से निकले बेसाल्ट लावा की दूसरी परत फैल गयी । पहली एवं दूसरी परतों के बीच को अन्तः ट्रैपीय संस्तर कहा जाता है ।
पुनः तीसरी बार ज्वालामुखी से निकले बेसाल्ट की परत तीसरे एवं नवीनतम ट्रैप का निर्माण किया । दूसरे तथा तीसरे ट्रैप के मध्य भी वनस्पति एवं जीव दबकर जीवाश्मीकृत हो गये । सर्वाधिक मात्रा में लावा का उद्गार इयोसीन काल का है, जो सबसे ऊपर पाया जाता है, इसलिए महाराष्ट्र के इस उद्गार को इयोसीन काल का माना जाता है । लावा के मोटे निक्षेप के कारण महाराष्ट्र में मिलने वाले खनिज दब गये । इस प्रकार महाराष्ट्र में खनिज तो हैं, किन्तु उनका उत्खनन कठिन है।
दक्कन का अर्थ ‘दक्षिणी’ होता है । विन्ध्याचल के दक्षिण में स्थित होने के कारण इसे दक्कन ट्रैप कहा गया। अपक्षय एवं अपरदन के फलस्वरूप महाराष्ट्र के बेसाल्ट पर काली मिट्टी का निर्माण हुआ, जिसमें लौहांश एवं अन्य खनिजों की प्रचुरता पायी जाती है, जिस पर कपास की अच्छी पैदावार होती है।
फलस्वरूप इसे कपास मिट्टी (Cotton Soil) या रेगुर मिट्टी (Regur Soil) या काली मिट्टी (Black Soil) कहा जाता है । इस मिट्टी पर अन्य फसलें, जैसे - गन्ना, गेहूँ, फल आदि होते हैं । इन फसलों पर आधारित विभिन्न कृषि-आधारित उद्योग, जैसे - सूती-वस्त्र, चीनी एवं फलोद्योग महाराष्ट्र में विकसित हुए हैं।
एक नए अध्ययन से पता चला है कि भारत के डेक्कन ट्रैप, ज्वालामुखी घटनाओं से उत्पन्न दुनिया की सबसे बड़ी आकृतियों में से एक, का निर्माण दो अलग अलग कलंगियों के विस्फोट के कारण हुआ है। कनाडा के क्यूबेक विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने भारत में 60 लाख वर्ष से भी अधिक समय से पहले हुई घटनाओं का चित्रण एक कंप्यूटर सिमुलेशन के जरिये किया है।
इसके निर्माण में अत्यधिक लावा होने के कारण इसने वैज्ञानिकों को अपनी ओर आकर्षित किया है क्योंकि शोधकर्ताओं के अनुसार यह एक विस्फोट से निकले लावा से कहीं अधिक है।
पिछले अध्ययनों से यह पाया गया था कि यह 66 लाख वर्ष पहले एक कलंगी में विस्फोट होने करने के कारण अस्तित्व में आया जोकि अब हिन्द महासागर में रीयूनियन द्वीप के नीचे सीधे निहित है। विस्फोट की घटनाओं जिन्होंने डेक्कन ट्रैप का निर्माण किया, का ऐतिहासिक महत्व काफी अधिक है क्योंकि अधिकतर वैज्ञानिकों का मानना है कि यह घटना डायनासोरों के पतन का कारण बनी।
दक्कन का पठार:
दक्कन का पठार सतपुड़ा, महादेव तथा मैकाल श्रृंखला से लेकर नीलगिरी पर्वत के बीच अवस्थित है। इसकी औसत ऊँचाई 300-900 मी. के बीच है। इसे पुनः तीन पठारों में विभाजित किया गया है। महाराष्ट्र का पठार (काली मृदा), आंध्रप्रदेश का पठार, जिसे ‘आंध्रा प्लेटो’ कहते हैं । यह धात्विक खनिजों के लिए प्रसिद्ध है।
ज्वालामुखी से निकले बेसाल्ट की कई क्रमिक परतों को ट्रैप कहा जाता है । महाराष्ट्र में सर्वप्रथम क्रिटैशियस काल में दरारी उद्गार से बेसाल्ट का जमाव हुआ । इस बेसाल्ट परत के ऊपर अपक्षय के कारण काली मिट्टी बढ़ी, जिस पर वनस्पति एवं जीवों का विकास हुआ । इयोसीन काल में पुनः ज्वालामुखी से निकले बेसाल्ट लावा की दूसरी परत फैल गयी । पहली एवं दूसरी परतों के बीच को अन्तः ट्रैपीय संस्तर कहा जाता है ।
पुनः तीसरी बार ज्वालामुखी से निकले बेसाल्ट की परत तीसरे एवं नवीनतम ट्रैप का निर्माण किया । दूसरे तथा तीसरे ट्रैप के मध्य भी वनस्पति एवं जीव दबकर जीवाश्मीकृत हो गये । सर्वाधिक मात्रा में लावा का उद्गार इयोसीन काल का है, जो सबसे ऊपर पाया जाता है, इसलिए महाराष्ट्र के इस उद्गार को इयोसीन काल का माना जाता है । लावा के मोटे निक्षेप के कारण महाराष्ट्र में मिलने वाले खनिज दब गये । इस प्रकार महाराष्ट्र में खनिज तो हैं, किन्तु उनका उत्खनन कठिन है।
दक्कन का अर्थ ‘दक्षिणी’ होता है । विन्ध्याचल के दक्षिण में स्थित होने के कारण इसे दक्कन ट्रैप कहा गया। अपक्षय एवं अपरदन के फलस्वरूप महाराष्ट्र के बेसाल्ट पर काली मिट्टी का निर्माण हुआ, जिसमें लौहांश एवं अन्य खनिजों की प्रचुरता पायी जाती है, जिस पर कपास की अच्छी पैदावार होती है।
फलस्वरूप इसे कपास मिट्टी (Cotton Soil) या रेगुर मिट्टी (Regur Soil) या काली मिट्टी (Black Soil) कहा जाता है । इस मिट्टी पर अन्य फसलें, जैसे - गन्ना, गेहूँ, फल आदि होते हैं । इन फसलों पर आधारित विभिन्न कृषि-आधारित उद्योग, जैसे - सूती-वस्त्र, चीनी एवं फलोद्योग महाराष्ट्र में विकसित हुए हैं।
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