Hindi, asked by prabhgun1609, 10 months ago

फूल को जो फूल समझे, भूल है यह,
शूल को जो शूल समझे, भूल है यह,
मूल में अनुकूल या प्रतिकूल के कण,
धूलि भूलों की हटाने आ रहा हूँ।
Whats the meaning?​

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Answered by Anonymous
3

Answer:

हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर,

बैठ शिला की शीतल छाँह

एक पुरुष, भीगे नयनों से

देख रहा था प्रलय प्रवाह ।

नीचे जल था ऊपर हिम था,

एक तरल था एक सघन,

एक तत्व की ही प्रधानता

कहो उसे जड़ या चेतन ।

दूर दूर तक विस्तृत था हिम

स्तब्ध उसी के हृदय समान,

नीरवता-सी शिला-चरण से

टकराता फिरता पवमान ।

तरूण तपस्वी-सा वह बैठा

साधन करता सुर-श्मशान,

नीचे प्रलय सिंधु लहरों का

होता था सकरुण अवसान।

उसी तपस्वी-से लंबे थे

देवदारू दो चार खड़े,

हुए हिम-धवल, जैसे पत्थर

बनकर ठिठुरे रहे अड़े।

अवयव की दृढ मांस-पेशियाँ,

ऊर्जस्वित था वीर्य्य अपार,

स्फीत शिरायें, स्वस्थ रक्त का

होता था जिनमें संचार।

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