फावड़े और हल राजदंड बनने को हैं,
धूसरता सोने से शृंगार सजाती है;
दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
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व्याख्या- प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी की 'जनतंत्र का जन्म' नामक कविता से ली गई हैं। इन पंक्तियों का प्रसंग जनता से जुड़ा है, लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि होती है। वही शक्ति को चलाता है। वही शक्ति की रक्षा करता है। वह सत्ता के लिए लड़ती है।
लोकतंत्र का राजदंड कोई हथियार या अलग किस्म का औजार नहीं है। लोकतन्त्र का मूल राजदण्ड जनता का हल और फावड़ा है, क्योंकि इसी के द्वारा यह धरती से सोना पैदा करता है और लोकतन्त्र को मजबूत और समृद्ध बनाता है। अब कुदाल और कुदाल राजदंड के प्रतीक बनेंगे। आज सोना धरती की धूसरता की शोभा बढ़ा रहा है, यानी धूल में ही सोने के कण छिपे हुए हैं।
भले ही उनका रूप भिन्न हो। जल्दी से दे दो, देखो, समय के रथ का पहिया गड़गड़ाहट करता हुआ आगे बढ़ रहा है। जल्दी गद्दी खाली करो, देखो लोग खुद आते हैं। इन पंक्तियों का रहस्य यह है कि जनता लोकतंत्र की रक्षक, निर्माता और पालक है।
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