Hindi, asked by gogoipriya225, 7 months ago

फसलों के त्योहार पाठ के सारांश

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Answered by thanmayi63
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जाड़ा का मौसम है। दस दिनों से सूरज नहीं उगा है। हम लोग सूरज के इंतजार में हैं। रजाई से निकलने की हिम्मत नहीं हो रही। लेकिन खिचड़ी (मकर संक्रांति) का त्योहार आ गया है। अतः जाड़ा के बावजूद हम सभी नहा-धोकर एक कमरे में इकट्ठा हो गए। दादा, चाचा और पापा ने सफेद चकाचक माँड़ लगी धोती और कुर्ता पहना हुआ है। सामने मचिया पर खादी की सफेद साड़ी पहने हुए दादी बैठी थीं। उनके बाल धुलने के बाद सफेद सेमल की रुई जैसे हो गए हैं। उनके सामने केले के कुछ पत्ते कतार में रखे हैं जिसपर तिल, मिट्ठा (गुड़), चावल आदि रखे हुए हैं। दादी ने हम सबसे इन चीजों को बारी-बारी से छूने और प्रणाम करने के लिए कहा। बाद में इन्हें दान दे दिया गया।
खिचड़ी के दिन चूड़ा-दही और खिचड़ी खाने का रिवाज है। किन्तु अप्पी दिदिया को दोनों में से कोई चीज पसंद नहीं है। फिर भी उन्हें दोनों चीजें खानी होंगी क्योंकि आज खिचड़ी का त्योहार है। इस दिन तिल, गुड़ और चीनी के तिलकुट भी खाए जाते हैं जो बड़े स्वादिष्ट लगते हैं।

जनवरी माह के मध्य में भारत के लगभग सभी प्रांतों में फसलों से जुड़ा कोई-न-कोई त्योहार मनाया जाता है। सभी प्रांतों और इलाकों का अपना रंग और अपना ढंग नजर आता है। इस दिन सब लोग अच्छी पैदावार की उम्मीद और फसलों के घर में आने की खुशी का इजहार करते हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश में मकर संक्रांति या तिल संक्रांति, असम में बीहू, केरल में ओणम, तमिलनाडु में पोंगल, पंजाब में लोहड़ी, झारखंड मे सरहुल, गुजरात में पतंग का पर्व सभी खेती और फसलों से जुड़े त्योहार हैं। इन्हें जनवरी से मध्य अप्रैल तक अलग-अलग समय मनाया जाता है। झारखंड में सरहुल काफी धूमधाम से मनाया जाता है। अलग-अलग जनजातियाँ इसे अलग-अलग समय में मनाती हैं। इस दिन ‘साल के पेड़ की पूजा की जाती है। इसी समय से मौसम बहुत खुशनुमा हो जाता है। इसीदिन से वसंत ऋतु की शुरुआत मानी जाती है। धान की भी पूजा की जाती है। पूजा किया हुआ आशीर्वादी धान अगली फसल में बोया जाता है।
तमिलनाडु में फसलों से जुड़ा त्योहार ‘पोंगल’ है। इसदिन खरीफ की फसलें चावल, अरहर, मसूर आदि केटकर घरों में पहुँचती हैं और लोग नए धान कूटकर चावल निकालते हैं। हर घर में मिट्टी का नया मटका लाया जाता है। इसमें नए चावल, दूध और गुड़ डालकर उसे पकने के लिए धूप में रख देते हैं। जैसे ही दूध में उफान आता है और दूध-चावल मटके से बाहर गिरने लगता है तो “पोंगला-पोंगल, पोंगला-पोंगल” के स्वर गूंजने लगते हैं।”

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