fashion aur vidyarthi essay
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फैशन और विद्यार्थी | Fashion aur vidyarthi | Fashion and Students
वर्तमान युग प्रतिस्पर्धा का युग है|सभी को स्वयं को ज्यादा से ज्यादा सुंदर और आधुनिक दिखाने की चाह है| इसके लिए वे अपने आराम से भी समझौता कर लेते है और अंधाधुंध रूपये खर्च करते है| इसके खतरनाक प्रभाव भी हो सकते है जैसे ज्यादा हील पहनने से जोड़ो में दर्द, ज्यादा मेकअप से त्वचा को नुकसान और भारी आभूषणों से नाक व कान की त्वचा जख्मी होना| पर युवाओं को फेशन अत्यधिक प्रिय है| जहाँ तक विद्यार्थी और फेशन का सम्बन्ध है, विद्या ही विद्यार्थी का आभूषण है| स्कूलों में तो यूनिफार्म अनिवार्य है| यह एक सुखद अहसास है क्योंकि स्कूल में सभी विद्यार्थी सिर्फ विद्या अर्जन के लिए आते है न कि कोई दिखावा करने| वहां जाति, लिंग,आर्थिक स्थिति के आधार पर कोई भेद नही होता| अत: विद्यार्थियों से ये अपेक्षित है कि वे फेशन की आड़ में किसी प्रतिस्पर्धा का हिस्सा न बनें| सादगी से रहे| अपना श्रम और समय अध्ययन में लगाये| वैसे भी विद्या की देवी सरस्वती है जो स्वयम श्वेत परिधान धारण करती है| अत्यंत सादगी से रहती है पर उनके मुख की आभा और तेज उन्हें सबकी पूजनीय बनाता है| अत: बाहरी चमक-दमक दिखाने की अपेक्षा बेहतर होगा विद्यार्थी अपना व्यक्तित्व आकर्षक बनाये अपने ज्ञान को विस्तृत बनाये| अत: निष्कर्ष रूप में महाकवि कालिदास जी की यह उक्ति प्रासंगिक होगी कि “सुन्दर वस्तुओं के विषय में प्रत्येक वस्तु अलंकार बन जाती है इसलिए विद्यार्थियों को भड़कीले परिधान , आभूषण और दिखावे को त्यागकर विद्या अर्जन को अपना लक्ष्य बनाना चाहिए|”
वर्तमान युग प्रतिस्पर्धा का युग है|सभी को स्वयं को ज्यादा से ज्यादा सुंदर और आधुनिक दिखाने की चाह है| इसके लिए वे अपने आराम से भी समझौता कर लेते है और अंधाधुंध रूपये खर्च करते है| इसके खतरनाक प्रभाव भी हो सकते है जैसे ज्यादा हील पहनने से जोड़ो में दर्द, ज्यादा मेकअप से त्वचा को नुकसान और भारी आभूषणों से नाक व कान की त्वचा जख्मी होना| पर युवाओं को फेशन अत्यधिक प्रिय है| जहाँ तक विद्यार्थी और फेशन का सम्बन्ध है, विद्या ही विद्यार्थी का आभूषण है| स्कूलों में तो यूनिफार्म अनिवार्य है| यह एक सुखद अहसास है क्योंकि स्कूल में सभी विद्यार्थी सिर्फ विद्या अर्जन के लिए आते है न कि कोई दिखावा करने| वहां जाति, लिंग,आर्थिक स्थिति के आधार पर कोई भेद नही होता| अत: विद्यार्थियों से ये अपेक्षित है कि वे फेशन की आड़ में किसी प्रतिस्पर्धा का हिस्सा न बनें| सादगी से रहे| अपना श्रम और समय अध्ययन में लगाये| वैसे भी विद्या की देवी सरस्वती है जो स्वयम श्वेत परिधान धारण करती है| अत्यंत सादगी से रहती है पर उनके मुख की आभा और तेज उन्हें सबकी पूजनीय बनाता है| अत: बाहरी चमक-दमक दिखाने की अपेक्षा बेहतर होगा विद्यार्थी अपना व्यक्तित्व आकर्षक बनाये अपने ज्ञान को विस्तृत बनाये| अत: निष्कर्ष रूप में महाकवि कालिदास जी की यह उक्ति प्रासंगिक होगी कि “सुन्दर वस्तुओं के विषय में प्रत्येक वस्तु अलंकार बन जाती है इसलिए विद्यार्थियों को भड़कीले परिधान , आभूषण और दिखावे को त्यागकर विद्या अर्जन को अपना लक्ष्य बनाना चाहिए|”
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