Full summary of topi shukla in hindi
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दरअसल टोपी शुक्ला कहानी दो अलग-अलग धर्मों से जुड़े बच्चों की है। इस कहानी में एक बच्चे और एक बूढ़ी दादी के बीच प्यार को दिखाया गया है।
टोपी शुक्ला और इफ़्फ़न एक-दूसरे के बहुत पुराने और गहरे मित्र थे। दोनों एक-दूसरे के बिना अधूरे थे। टोपी शुक्ला हिंदू धर्म को मानता था, वहीं उसके दोस्त इफ़्फ़न और उसकी दादी मुस्लिम धर्म से थे और दोनों के दिलों में प्यार की प्यास थी। लेकिन जब भी टोपी शुक्ला अपने दोस्त इफ़्फ़न के घर जाता था तो वह दादी के पास ही बैठता। इफ़्फ़न की बूढ़ी दादी की मीठी पूरबी बोल उसके मन को बहुत भाता था। दादी पहले रोज टोपी शुक्ला की अम्मी के बारे में पूछती थी और फिर उसे रोज कुछ खाने को देती थीं। टोपी शुक्ला को बूढ़ी दादी का हर शब्द गुड़ की डली सा लगता था। इसीलिए दोनों का रिश्ता बहुत ही खास और गहरा था। इफ़्फ़न की दादी जितना उसे प्यार करती थीं उतना ही टोपी शुक्ला को भी करती थीं, ना ही उससे कम ,ना ही उससे ज्यादा। वहीं एक दिन ऐसा हुआ जब बूढ़ी दादी का मृत्यु हो गया उसके बाद टोपी शुक्ला को ऐसा लगने लगा कि उसकी जिंदगी में दादी का छत्रछाया ही नहीं रहा और उसको अपने दोस्त इफ़्फ़न का घर खाली लगने लगा।
इस कहानी को पढ़ने के बाद हमें यह सीख मिलता है कि प्यार किसी धर्म और जात को नहीं देखता बस हो जाता है।
टोपी शुक्ला दो अलग-अलग धर्मों से जुड़े बच्चों और एक बच्चे व एक बुढ़ी दादी के बीच स्नेह की कहानी है।
इफ़्फ़न और टोपी शुक्ला दोनों गहरे दोस्त थे। एक दूसरे के बिना अधूरे थे परन्तु दोनों की आत्मा में प्यार की प्यास थी।टोपी हिंदू धर्म का था और इफ़्फ़न की दादी मुस्लिम। परन्तु जब भी टोपी इफ़्फ़न के घर जाता दादी के पास ही बैठता। उनकी मीठी पूरबी बोली उसे बहुत अच्छी लगती थी। दादी पहले अम्मा का हाल चाल पूछतीं। दादी उसे रोज़ कुछ न कुछ खाने को देती परन्तु टोपी खाता नहीं था। फिर भी उनका हर शब्द उसे गुड़ की डली सा लगता था। इसलिए उनका रिश्ता अटूट था। इफ़्फ़न की दादी जितना प्यार इफ़्फ़न को करती उतना ही टोपी को भी करती थी, टोपी से अपनत्व रखती थी। उनकी मृत्यु के बाद टोपी को ऐसा लगा मानो उस पर से दादी की छत्रछाया ही खत्म हो गई है। इसलिए टोपी को इफ़्फ़न की दादी की मृत्यु के बाद उसका घर खाली सा लगा।