Hindi, asked by utkarshanand47855, 18 days ago

G पूर्णांक : 90 1. खंड 'क' इस अपठित गद्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए- पर्यावरण बड़ा व्यापक शब्द है। पर्यावरण उस समस्त जैविक, भौतिक व्यवस्था का पर्याय है जिसमें जीवधारी रहते, बढ़ते और पनपते हैं। पर्यावरण केवल विकासशील राष्ट्रों की समस्या नहीं बल्कि यह समस्या सारी पृथ्वी की है। पृथ्वी एक है, उसके चारों ओर का वायुमंडल भी एक है। पृथ्वी पर रहनेवाले प्राणी पर्यावरण में हुए किसी भी बदलाव से अवश्य प्रभावित होते हैं। आज पर्यावरण की समस्या किसी एक देश विशेष तक सीमित न रहकर सारे विश्व की समस्या बनकर चर्चा का विषय बन गई है। आज प्राकृतिक ऊर्जा क अपव्यय हो रहा है। प्रकृति के संसाधन सीमित हैं। उनके अपव्यय से ये भंडार शीघ्र ही समाप्त हो जाएँगे अपव्यय के कारण ही सारी पृथ्वी ऊर्जा-संकट से गुज़र रही है। कोयला, तेल आदि फ़ॉसिल ईंधनों की का हो रही है। ईंधन के विनाश से प्राकृतिक ऊर्जा की कमी होती जाएगी तो वातावरण में कार्बन-डाइऑक्साइ की वृद्धि प्राणी जगत के लिए घातक सिद्ध होगी। प्रश्न i. पर्यावरण का क्या अर्थ है ? ii. आज विश्व में कौन-सी समस्या चर्चा का विषय बन गई है? ii. ईंधन के विनाश से किसकी कमी होती जा रही है? iv. फ़ॉसिल ईंधन क्या है? v. 'घातक' शब्द का समानार्थी शब्द लिखिए। अपने प्रथम आने की खुशी में मित्र को दावत का निमंत्रण देने के लिए पत्र लिखिए। 2. अथवा​

Answers

Answered by riiyakwatra
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rakh phone rakh kutria sala

Answered by siwanikumari42
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Answer:

सुख विश्वास से उत्पन्न होता है। सुख जड़ता से भी उत्पन्न होता है। पुराने जमाने के लोग सुखी इसलिए थे कि ईश्वर की सत्ता में उन्हें विश्वास था। उस जमाने के नमूने आज भी हैं, मगर वे महानगरों में कम मिलते हैं। उनका जमघट गाँवों, कस्बों या छोटे-छोटे नगरों में है। इनके बहुत अधिक असंतुष्ट न होने का कारण यह है कि जो चीज़ उनके बस में नहीं है, उसे वे अदृश्य की इच्छा पर छोड़कर निश्चित हो जाते हैं। इसी प्रकार सुखी वे लोग भी होते हैं, जो सच्चे अर्थों में जड़तावादी हैं, क्योंकि उनकी आत्मा पर कठखोदी चिड़िया चोंच नहीं मारा करती, किंतु जो न जड़ता को स्वीकार करता है, न ईश्वर के अस्तित्व को तथा जो पूरे मन से न तो जड़ता का त्याग करता है और न ईश्वर के अस्तित्व का, असली वेदना उसी संदेहवादी मनुष्य की वेदना है। पश्चिम का आधुनिक बोध इसी पीड़ा से ग्रस्त है। वह न तो मनुष्य भैंस की तरह खा-पीकर संतुष्ट रह सकता है न अदृश्य का अवलंब लेकर चिंतामुक्त हो सकता है। इस अभागे मनुष्य के हाथ में न तो लोक रह गया है, न परलोक। लोक इसलिए नहीं कि वह भैंस बनकर जीने को तैयार नहीं है और परलोक इसलिए नहीं कि विज्ञान उसका समर्थन नहीं करता। निदान, संदेहवाद के झटके खाता हुआ यह आदमी दिन-रात व्याकुल रहता है और रह-रहकर आत्महत्या की कल्पना करके अपनी व्याकुलता का रेचन करता रहता है।

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