गो बंसीवारे ललना!
जा जागो मोरे प्यारे
रजनी बीती, भोर भयो है, घर-घर खुले किंवार
पापी दही मथत, सुनियत हैं कंगना के झनकारे।।
चालालजी भोर भयो है. सुर-नर टाढ़ द्वार।
बाल-बाल सब करत कुलाहल, जय-जय सबद उचारे।।
नवन-रोटी हाथ मह लोनी, गठवन के रखवारे।
ना के प्रभु गिरधर नागर सरण आयाँ को तारे।। iska sandrbh Prasang aur Arth likho
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