गिफिन वस्तुओं का आय प्रभाव णात्मक क्यों होता है ?
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Explanation:
गिफिन वस्तुएँ- गिफिन वस्तुओं के संबध में मागँ का नियम लागू नहीं होता है। घटिया वस्तुओं की कीमत में कमी होने पर उपभोक्ता इनकी माँग घटा देता है अथवा कम कर देता है। इससे तो धन बच जाता है, उससे वह श्रेष्ठ (Superior) वस्तूएँ क्रय कर लेता है। भले ही उनकी कीमतों में वृद्धि क्यों न हो, जैसे - ज्वार-बाजरा, गेहँू की तुलना में घटिया किस्म की वस्तु है। चूँकि बाजार में गेहूँ का मूल्य बहुत अधिक होता है इसलिए निर्धन लोग अपनी आय का अधिक भाग ज्वार-बाजरा पर खर्च करते हैं और अपनी आवश्यकता को सतुंष्ट करते हैं। एसे घटिया किस्म की वस्तुओं की कीमतों में जब बहतु अधिक कमी होती है तो गरीब लोगों की वास्तविक आय अर्थात् उनकी खरीददारी करने की क्षमता बढ़ जाती है और अपनी बढ़ी हुई वास्तविक आय से श्रेष्ठ किस्म की वस्तु खरीदते है। इससे उनके जीवन-स्तर में सुधार होता है। इस प्रकार, घटिया किस्म की वस्तुओं के मूल्य में कमी होने पर भी इसकी माँग में वृद्धि न होकर कमी हो जाती है और माँग-वक्र नीचे से ऊपर की ओर बढ़ने लगता है।
अज्ञानता-प्रभाव - कभी-कभी लोग अज्ञानतावश अधिक कीमत वाली वस्तुओं को अच्छी एवं श्रेष्ठ समझने लगते हैं और कम कीमत वाली वस्तुओं को घटिया किस्म की वस्तु मानने लगते हैं। इस अज्ञानता के कारण भी वस्तु को मूल्यों में बढा़ेत्तरी होने पर उसकी माँग बढ जाती है और मूल्यों में कमी होने पर माँग कम हो जाती है।
दुर्लभ वस्तुएँ - यदि उपभोक्ता को किसी वस्तु के भविष्य में दुर्लभ हो जाने की आशंका है तो कीमत बढ़ जाने पर उसकी मागँ बढ जायेगी, जैसे- खाडी़ युद्ध के कारण तले व खाद्यान्नों के संबंध में यह बात सिद्ध हो चुकी है।
विशेष अवसर पर - विशेष अवसरों पर भी माँग का नियम लागू नहीं होता है, जैसे- शादी, त्यौहार या विशेष अवसर, इन अवसरों पर वस्तु के मूल्य बढ़ने पर माँग बढ़ती है। इसी प्रकार, यदि संक्रामक रागे फैल जाये तो मछली के मूल्य में कमी होने पर भी उसकी माँग कम हो जाती है।