गंग जमुन उर अंतरै, सहज सुनि ल्यौ घाट तहाँ कबीरै मठ रच्या, मुनि जन जोवै बाट vyakhya btaiye
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गंगा और जमुना हृदय में ही हैं, किसी तीर्थ यात्रा की कोई आवश्यकता नहीं है। हृदय में गंगा जमुना से आशय इड़ा और पिंगला से है। शून्य शिखर आकाश घाट में स्थापित हैं। यह सब भीतर ही है और सहज और शून्य है। इस घाट (सहज शून्य ) को कबीर साहेब ने अपना मठ (निवास स्थान ) बना लिया है। अन्य संत और ज्ञानी शास्त्रीय ज्ञान के सहारे भटक रहे हैं, लेकिन किसी लक्ष्य तक नहीं पहुंच पा रहे हैं।
कबीर साहेब ऐसे शून्य में साधना में मग्न हैं। यही सहज समाधि है। इस साखी में व्यक्तिरेक अलंकार की व्यंजना हुई है।
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