(ग) प्रेम सदा अति ऊँचो, लहै सु कहै इति भांति की
बात छकी।
सुनिकै सबके मन लालच दौरे, पै बोर लखे सब
बुद्धि चकी ॥
जग की कविताई के धोखें रहैं, हां प्रवीनन की
मति जाति जकी।
समुझे कवित्त धन आनंद की हीय-आंखिन नेह
की पीर लकी
Answers
प्रेम सदा अति ऊँचो लहै, सुकहै इहि भाँति की बात छकी।
सुनिकै सबके मन लालच दौरै, पै बोरे लखैं सब बुद्धि चकी।।
जग की कविताई के धोखें रहैं, ह्याँ प्रवीननि की मति जाति जकी।
समुझै कविता ‘घन आनंद की’ हिय आँखिन नेह की पीर तकी।।
अर्थात प्रेम का स्थान सदैव ऊंचा होता है और इस स्थान को पाने का लालच सबके मन में होता है। प्रेमी बनना तो आसान है लेकिन प्रेम का अधिकार पाना उतना ही कठिन है। प्रेम का उत्तरदायित्व निभाना बेहद टेढ़ी खीर के समान है, जैसे शेरनी दूध लेना भी आसान हो सकता है, लेकिन प्रेम के पथ पर चलना ये बेहद कठिन है। किन प्रेम का अधिकार प्राप्त कर लेना बेहद कठिन है।
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Explanation:
प्रेम सदा अति ऊँचो लहै, सुकहै इहि भाँति की बात छकी। सुनिकै सबके मन लालच दौरे, पै बोरे लखें सब बुद्धि चकी।। जग की कविताई के धोखें रहैं, ह्याँ प्रवीननि की मति जाति जकी। समुझै कविता ‘घन आनंद की' हिय आँखिन नेह की पीर तकी।।
अर्थ: इस अधिकार का पाना कितना कठिन है, कैसा दुर्लभ है, इसे कौन कह सकता है। प्रेमी होना चाहे कुछ आसान भी हो, पर प्रेम का अधिकारी होना तो एकदम मुश्किल है। बड़ी टेढ़ी खीर है। सिंहिनी का दूध दुह लेना चाहे कुछ सुगम भी हो, पर प्रेम का अधिकार प्राप्त कर लेना तो महान् कठिन है।
हमारी मनोव्यथा सुनने समझने का अधिकारी तो वही हो सकता है,
जिसे अपना शरीर दे दिया है, मन सौंप दिया है और जिसके हृदय
को अपना निवास स्थान बना लिया है अथवा जिसे अपने दिल में
बसा लिया है। उससे अपना क्या भेद छिपा रह सकता है। ऐसे प्रेमी
को अपने रामकहानी सुनाते सचमुच बड़ा आनन्द आता है, क्योंकि
वही उसके सुनने समझने का सच्चा अधिकारी है।