गोपियाँ लोकव्यवहार और राजनीति की बहुत अच्छी ज्ञाता थीं| निम्नलिखित में से किस पंक्ति से यह बात भली-भांति समझी जा सकती है-
चाहती हुतीं गुहार जितहिं तैं, उत तैं धार बही||
यह तौ ‘सूर’ तिनहिं लै सौंपौ, जिनके मन चकरी||
सु तौ ब्याधि हमकौं लै आए, देखी सुनी न करी|
राज धरम तौ यहै ‘सूर’, जो प्रजा न जाहिं सताए||
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ok sanjana you are also that.
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