(ग) परोपकार की भावना जीवन को ऊँचा उठाने वाली है। परोपकारी जीवन वास्तव में वही है, जो अपनी ओर से भी
विमुख रहे। उसके सम्मुख दूसरे का भला ही हो। वह उठते-बैठते, सोते-जागते हर समय दूसरों का ही चिंतन करे, दूसरों के दुःख से
दु:खी और दूसरों के सुख से सुखी हो। परोपकारी की यह भावना, उसकी आत्मा को विकास और विस्तार प्रदान करती है। उसे एक
अनोखी आत्मिक शांति मिलती है। मानसिक शुद्धता के साथ-साथ चारित्रिक पवित्रता प्राप्त होती है। परोपकारी का जीवन समाज
के लिए आदर्श बन जाता है और लोग उसे देवता मानने लगते हैं। क्योंकि जन-साधारण और देवता में यही अंतर है कि जन-साधारण
अपने लिए और देवता दूसरों के लिए सोचता है।
प्रश्न-1. परोपकार का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
प्रश्न-2. वास्तविक परोपकारी कौन है?
उत्तर-
प्रश्न-3. परोपकारी का जीवन समाज के लिए कैसा बन जाता है?
उत्तर-
प्रश्न-4. जनसाधारण और देवता में क्या अंतर है?
उत्तर -
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ans1- परोपकार का अर्थ है कि दूसरे के दुख में दुखी और दूसरे के सुख में सुखी होना।
ans2- वास्तविक परोपकारी भगवान है।
ans3- परोपकारी का जीवन समाज के लिए आदर्श बन जाता है।
ans4- यह अंतर है कि जनसाधारण अपने लिए और देवता दूसरे के लिए सोचता है
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