गुरुबानी कविता का महत्व स्पष्ट कीजिए
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जो लोग गुरु से लापरवाही बरतते हैं और अपने–आपको ही ज्ञानी समझते हैं; वे व्यर्थ ही उगने वाले तिल की झाड़ियों के समान हैं। दुनिया के लोग उनसे किनारा कर लेते हैं। इधर से वे फलते–फूलते दिखाई देते हैं पर उनके भीतर झाँककर देखो तो गंदगी और मैल के सिवा कुछ दिखाई नहीं देगा।। १।।
मोह को जलाकर उसे घिसकर स्याही बनाओ। बुद्धि को श्रेष्ठ कागज समझो ! प्रेमभाव की कलम बनाओ। चित्त को लेखक और गुरु से पूछकर लिखो– नाम की स्तुति। और यह भी लिखो कि उस प्रभु का न कोई अंत है और न कोई सीमा।। २।।
हे मन ! तू दिन–रात भगवान के गुणों का स्मरण कर जिन्हें एक क्षण के लिए भी नहीं भूलता। संसार में ऐसे लोग विरले ही होते हैं। अपना ध्यान उसी में लगाओ और उसकी ज्योति से तुम भी प्रकाशित हो जाओ। जब तक तुझमें अहंभाव या ‘मैं, मेरा, मेरी’ की भावना रहेगी तब तक तुझे प्रभु के दर्शन नहीं हो सकते। जिसने हृदय से भगवान के नाम की माला पहन ली है; उसे ही प्रभु के दर्शन होते हैं।। ३।।