गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पाय। बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दिये मिलाया। गुरु कुम्हार सिष कुभ है, गढ़ि-गाढ़ि का खेटा मीतर हाय सहार दे. बहर बहै चोट।2।। सतगुरु की महिमा अनंत, अनंत किया उपकार। लोचन अनंत व्यड़या, अनंत दिखवहारा लाली मेरे लाल की, जित देखू तित लाला लाली देखन मैं गई, मैं भी हो गई लाला। कस्तूरी कुंडलि बसै, मृग दृढे बन महि। ऐसे बट-घट राम हैं, दुनियाँ देखे नाहि।5।। कबीर सीप समंद की, स्टै पियास-पियास। समंदहि तिनका बरि गिर्ने, एक स्वाति बूंद की आस।।6।। माला फेरत चुग गया, फिरा न मन का फेर। कर का मनका डारि दे, मन का मनका फेरा साँई इतना दीजिए, जामें कुटुम समाय। मैं भी भूखा न रहूँ, साधु न भूखा जाय।।8।। तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहिं न पान। कहि रहीम पर काज हित, संपति संचहि सुजान।।9।। रहिमन विपदा हू भली, जो थोरे दिन होय। हित-अनहित या जगत में, जान परत सब कोय।।10। कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीत। विपत-कसौटी जे कसे, सोई साँचे मीत।।11।। रहिमन जिह्वा बावरी, कह गई आकाश-पाताल। आपहुँ तो भीतर गई, जूती खात कपाल।।12।। 50
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jay Jay
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hguyic Hyfxhir hje
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