ग्रामीण व शहरी वातावरण मे अंतर
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ग्रामीण जीवन शहरों की अपेक्षा काफी शांतिपूर्ण है और यहां लोग एक व्यस्त जीवन नहीं जीते। वे सुबह जल्दी उठ जाते हैं और रात को भी समय पर सो जाते हैं। यहां की हवा भी प्रदूषित नहीं है और वहीं दूसरी तरफ शहरों में काफी प्रदूषण और भीड़ है। ग्रामीणों का जीवन भी साधारण होता है वहीं शहरी जीवन व्यस्तता एवं भारी तनाव से भरा हुआ होता है।
लेकिन गांवों में ज्यादातर आधारभूत सुविधाओं जैसे बिजली, स्कूलों, नर्सिंग होम एवं कारखानें जहां लोगों को रोजगार मिलता है आदि की कमी होती है। गांवों में स्वयं के परिवहन के साधन की व्यवस्था की अनुपलब्धता की अनुपलब्धता की स्थिति में ग्रामीणों को कई मील तक पैदल चलने की गांवों में केवल मौसमी रोजगार उपलब्ध होते हैं एवं ज्यादातर लोगों को वहां लाभप्रद रोजगार उपलब्ध नहीं हैं। इन सभी कारकों की वजह से अचछी शिक्षा, रोजगार और जीवन की सुख-सुविधाओं की तलाश में ग्रामीण लोग बड़े पैमाने पर शहरी क्षेत्रों की ओर पलायन कर रहे हैं।
लेकिन शहरों में जीवन का अपना एक अलग नकारात्मक पहलू है - यह दबाव, तनाव और चिंता से भरा पड़ा है। यहाँ के लोगों के पास आराम और सुविधाओं की कई सामग्रियां होती हैं लेकिन उन्हें मानसिक शांति नसीब नहीं होती है। वे निजी और पेशेवर जीवन से संबंधित कार्यों में इतना व्यस्त होते हैं कि वे कभी कभी वे भी अपने पड़ोसी तक को नहीं जानते। लगातार प्रदर्शन के दबाव की वहज से उनेक स्वास्थ्य पर भी भारी प्रभाव पड़ता है और वे कम उम्र में ही जीवन शैली से संबंधित विभिन्न रोगों ग्रस्त हो जाते हैं। उनमें से कुछ की तो रातों की नींद भी हराम हो जाती है और उनका मानसिक संतुलन भी बिगड़ जाता है। इस तरह से ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में जीवन में जमीन आसमान का अंतर है लेकिन फिर भी ये दोनों ही भारत के विकास के अभिन्न अंग हैं