ग्राम पंचायत की आय के 3 स्रोत लिवो
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भारतीय संविधान के 73वें संसोधन के तहत स्थानीय शासन को महत्त्व प्रदान करते हुए ग्राम पंचायतों को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया था। इसके आय से संबंधित महत्त्वपूर्ण प्रावधानों को निम्नलिखित रूपों में देखा जा सकता है।
संविधान के अनुच्छेद 270 के अनुसार केंद्रीय वित्त आयोग की सिफारिश के आधार पर स्थानीय निकायों को अनुदान प्रदान करने की बात की गई है।
केंद्र प्रायोजित योजनाओं के क्रियान्वयन के लिये धन और अतिरिक्त केंद्रीय सहायता के अंतर्गत विशिष्ट आवंटन के प्रावधान भी किये गए हैं।
अनुच्छेद 243झ के अनुसार राज्य वित्त आयोगों की सिफारिश के आधार पर राज्य सरकारों द्वारा आवंटित धन।
इसके अलावा राज्य सरकार से प्राप्त ऋण अनुदान के प्रावधान भी किये गए हैं।
आंतरिक संसाधन सृजन के प्रावधान भी किये गए हैं।
राज्य सरकारों के लिये यह अनिवार्य किया गया है कि वे पंचायतों को कर और गैर- कर राजस्व की वसूली के लिये सक्षम बनाने हेतु क़ानून बनाएँ।
पंचायतों की आय के प्रमुख स्रोतों को निम्नलिखित रूपों में देखा जा सकता है।
प्रांतीय सरकार से प्राप्त अनुदान।
भू राजस्व की धनराशि के अनुसार पंचायत कर।
विभिन्न मनोरंजन के कार्यों से संबंधित मनोरंजन कर।
गाँव के बाज़ारों तथा मेलों पर लगाया जाने वाला कर।
पशु तथा वाहनों पर लगाया जाने वाला कर।
संबंधित क्षेत्र के तालाबों में मत्स्य पालन से होने वाली आय।
कूड़ा-करकट तथा मृत पशुओं की बिक्री से होने वाली आय।
अन्य संपत्तियों के क्रय विक्रय पर कर।
पशुओं की रजिस्ट्रेशन फीस।
दुग्ध उत्पादन पर लगाया जाने वाला कर।
नालियों, सड़कों की सफाई तथा रोशनी के लिये लिया जाने वाला कर।
किंतु इन प्रावधानों के बाद भी भारत में ग्राम पंचायतों की वित्तीय स्थिति कमज़ोर है। अपनी अधिकांश वित्तीय आवश्यकताओं के लिये ये राज्य सरकार के अनुदानों पर आश्रित हैं। विश्व के अन्य देशों के मामले में भी भारत में स्थानीय निकायों के पास अपेक्षाकृत कम राजस्व है। एक अनुमान के अनुसार, वर्ष 2001 में संयुक्त राज्य अमेरिका में सरकार के कुल राजस्व का 15% स्थानीय निकायों के पास था, जबकि भारत में कुल राजस्व का केवल 3% भाग ही स्थानीय निकायों को प्राप्त हुआ था। इस क्षेत्र में केरल जैसे राज्य के उदाहरण को भी लिया जा सकता है। 14वें वित्त आयोग द्वारा पंचायतों के वित्तीय स्रोतों को बढ़ाए जाने के लिये पर्याप्त प्रावधान किये गए हैं। वर्तमान समय में पंचायतों के लिये वित्तीय स्रोतों को बढ़ाए जाने की आवश्यकता है ताकि इन्हें अपने कार्यों हेतु उचित धन प्राप्त हो सके।