Hindi, asked by nithintop1479, 1 year ago

गुरु नानक जी के कुछ दोहे और उसके तात्पर्य सहित बताईये|

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Answered by KomalaLakshmi
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जिनि सेविआ तिनि पाइआ मानु।

नानक गावीऐ गुणी निधानु।

तात्पर्य: जिसने प्रभु की सेवा की उसे सर्वोत्तम प्रतिश्ठा मिली।

इसीलिये उसके गुणों का गायन करना चाहिये-ऐसा गुरू नानक का मत है।

साचा साहिबु साचु नाइ

भाखिआ भाउ अपारू।

आखहि मंगहि देहि देहि

दाति करे दातारू।

    तात्पर्य: प्रभु सत्य एवं उसका नाम सत्य है।अलग अलग विचारों एवं भावों तथा बोलियों में उसे भिन्न भिन्न नाम दिये गये हैं।प्रत्येक जीव उसके दया की भीख माॅगता है तथा सब जीव उसके कृपा का अधिकारी हैऔर वह भी हमें अपने कर्मों के मुताबिक अपनी दया प्रदान करता है।



गुरमुखि नादं गुरमुखि वेदं

गुरमुखि रहिआ समाई।

गुरू ईसरू गुरू गोरखु बरमा

गुरू पारबती माई।

    तातोअरी : गुरू वाणी हीं शब्द एवं बेद है।प्रभु उन्हीं शब्दों एवं विचारों में निवास करते हैं।गुरू हीं शिव बिश्नु ब्रम्हा एवं पार्वती माता हैं।सभी देवताओं का मिलन गुरू के वचनों में हीं प्राप्त है।


Answered by mrAniket
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1 /- अंतकाल संगी नहिं कोऊ, यह अचरज की रीत॥
मन मूरख अजहूं नहिं समुझत, सिख दै हारयो नीत।
नानक भव-जल-पार परै जो गावै प्रभु के गीत॥

 
2 /
जगत में झूठी देखी प्रीत।

अपने ही सुखसों सब लागे, क्या दारा क्या मीत॥

मेरो मेरो सभी कहत हैं, हित सों बाध्यौ चीत।

अंतकाल संगी नहिं कोऊ, यह अचरज की रीत॥

मन मूरख अजहूं नहिं समुझत, सिख दै हारयो नीत।

नानक भव-जल-पार परै जो गावै प्रभु के गीत॥‘

नानक ने अपने दर्शन में कहा है - ‘धर्म अनुभूति है न कि कुछ बनी बनायी मान्यताएं और कर्मकांड.’ उन्होंने हिंदू धर्म के कर्म के सिद्धांत को स्वीकार किया पर मनुस्मृति, हठयोग, वेद आदि नकार दिए. उन्होंने कहा:

‘दादे, दोस न देऊ किसे, दोस करमन आपियान.

जो में किया सो मैं पाया, दोस न दीजे अवरजान.’

जहां भी नानक गए, उन्होंने अंध-मान्यताओं पर प्रहार किया. वह चाहे हिंदू धर्म की हो या इस्लाम की. जात, धर्म, रंग सबसे परे रहने की बात उन्होंने कही.

‘जो ब्रमांडे, सोई पिंडे, जो खोजे सो पावे.’

खुशवंत सिंह अपनी किताब, ’सिखों का इतिहास’ भाग एक में लिखते हैं - ‘नानक मानते थे चूंकि ख़ुदा निरंकार है, इसलिए इंसान उसकी शक्ति का अंदाज़ा नहीं लगा सकता.’ हालांकि नानक ने अक्सर हिंदू या मुस्लिम नामों से ख़ुदा को संबोधित किया, जैसे राम, हरी, गोविंद, मुरारी, रब या रहीम, पर हर बार उसे ‘सत-करतार’ या ‘सत-नाम’ भी कहा. वे ख़ुदा को दातार भी मानते हैं. नानक ने ईश्वर को परम सत्य मानकर बाकी के प्रवर्तकों के द्वारा ईश्वर को इस दुनिया का जनक मानने वाली बात से दूर रखा. क्योंकि अगर ईश्वर ‘पिता’ है तो फिर उसका पिता कौन? अगर उसने दुनिया बनाई है तो फिर उसे किसने बनाया है?’. खुशवंत आगे लिखते हैं कि इस बात में भी एक समस्या थी - अगर ईश्वर सत्य है तो फिर सत्य क्या है? नानक ने इस बात का फैसला गुरु पर छोड़ दिया था.


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