Hindi, asked by ntailor6529, 1 year ago

ग्रीष्मावकाश में घटी किसी रोचक घटना का वर्णन करते हुए अपने मित्र को एक पत्र लिखिए

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Answered by manuforce29
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बात है बहुत सालों पहले, बचपन के समय की। उन दिनों रोजाना स्कुल से आने के बाद शाम को (जेसा की हर स्कुली बच्चा करता है) हम लोग खेलने जाते थे पास के ही स्कुल ग्राउंड में । लेटेस्ट खेलों से लेकर पारम्परिक देसी खेल जेसे की क्रिकेट, बेडमिन्टन, गुल्ली डंडा, रामदोस्त,  कंचे (अंटिया) सब बडे मजे से खेले जाते थे, आज के जेसे नहीं कि हर बच्चा टी. वी. से चिपका हो । आलम ये था की उस दौरान शाम सुबह तो जगह नहीं मिलती थी, खेलने के लिये तो फिर जल्दी किसी गुरगे को बिठा कर जबरन कब्जा जमाया जाता, कि पहले हम आएं हैं तो हमारी टीम यहां खेलेगी, और इस ही क्रम में कभी कभी पंगे भी हो जाते थे । 

पहली टीम दुसरी टीम को कहती कि आ जाना कल शाम को चार बजे देख लेते हैं कि किसने असली मां का दुध पिया है, तो दुसरी टीम में से कोई पहलवान टाइप का लडका कहता कि कल क्या है आज ही देख लेते हैं, चल बता क्या करेगा हम सबके साथ । कोई बहुत बहसे होती व कभी कभी लडाई भी । पर अक्सर कल कल के चक्कर में कई लडाईयां टल जाया करती थी, क्यों कि दुसरे दिन दोनों ही टीमें नदारत होती थी फिर अक्सर बडा कोई सीनीयर मोस्ट व्यक्ती समझौता करा ही देता था, व फिर से वही खेल खेले जाते सदभावना के साथ ।

तब गन्दे खेलों में से एक थी अंटीया (कंचे), मंजे हुए खिलाडी स्कुल की गन्दी हो चुकी खाकी पेन्ट की जेब में जब छन छन करते हुए कन्चे बजाते हुए शाम को जब ग्राउंड का रुख करते थे तो एसा लगता था की जेसे कोई बहुत बडे महान कंचेबाज खिलाडी आ रहे हैं। और वही बडे कलेक्शन रखने वाले जब कभी शाम को हार जाते थे तो मायुस चेहरा लिये घर जाते, उनका मुंह एसा लटक जाता जेसे उनसे कोई दुनिया की दौलत छीन कर ले गया हो । तब दोस्त लोग एक दुसरे को ढ़ाढ़स बंधाते की क्या फर्क पडता है आज हारें हैं तो कल वापस सारी अंटीया जीत भी लेंगे, और बाद में दुसरे दिन दुसरी पार्टी को हराया केसे जाए इसकी रणनितियां बनायी जाती थी ।

अच्छे निशानेबाज बन्दे तो अपनी जेब में लकी वाला पानीचा कन्चा भी रखते थे (कहते यार ये मेरा लकी कन्चा है इससे परफेक्ट निशाने लगते है), कुछ तो बदमाश एसे थे की जब दुसरे का निशाना लगाने का नंबर आता था तो एक छोटा सा, या फिर काफी बडा सा कन्चा, रख देते थे, छोटा कन्चा होने से अक्सर सामने वाले के निशाने चुक जाते थे। अगर बडा कन्चा रख दिया जाता तो उस पर निशाना तो लगता पर वह अपने भारी वजन के कारण ज्यादा दूर नहीं जा पाता था व इस तरह से ज्यादा फिलडींग से श्याने खिलाडी बच जाते थे । उनमें से कुछ तो भारी गुरु घंटाल खिलाडी हुआ करते थे जो कि स्टील का छर्रा रखते थे, छर्रे से खेलने के दो फायदे थे एक तो दुसरे के दुसरे खिलाडी के निशाने कितने भी तेज क्यों ना हो, छर्रा ज्यादा वजन के कारण दूर नहीं जाता था व दुसरे पर गुस्सा निकालने के समय तो छर्रा जेसे बह्मास्त्र बन जाता था, नतीजा ये की सामने वाले की अंटी या तो फूट जाती या फिर ईतनी दुर चली जाती कि वो खिलाडी अंधेरा पडने तक फिलडींग ही करता रहता था ।

कन्चे के तेज निशानेबाज खिलाडी तो जेसे उस समय के शार्पशुटर थे मानो, उनमें से कुछ तो पर्सनल केशियर या खजांची भी रखते थे जो की अपनी जेब में बहुत सारे कंचे रखता था व वक्त जरुरत उधार भी देता । मकर संक्रान्ति के दिन तो पुरे ग्राउंड में जगह नही मिलती थी खेलने के लिये व तब नये नये जगहों की तलाश की जाती थी, और वहां जा कर खेला जाता था। खेल प्रेमियों की नगरी कहा जाने वाले हमारे कस्बे कांकरोली में आए दिन तरह तरह के मेच व प्रतिस्पर्धाएं होती ही रहती थी । पहले से काफी सुविधाएं हो गई हैं यहां, जेसे छायादार स्टेडीयम, अच्छी समतल जमीन व अन्य । 

पर अब में आज अपने उसी ग्राउंड को देखता हुं तो मन व्यथित हो उठता है कि एक समय ये भरा रहता था इतने यहां खिलाडी हुआ करते थे व आज पता नहीं क्या हो गया है कि ये ग्राउंड अक्सर सुनसान वीरान ही पडा रहता है।

Answered by bhatiamona
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ग्रीष्मावकाश में घटी किसी रोचक घटना का वर्णन करते हुए अपने मित्र को एक पत्र लिखिए

Answer:

न्यू शिमला सेक्टर-1

शिमला

171001

प्रिय रोहिनी  ,

     हेल्लो रोहिनी आशा करती हूँ कि तुम ठीक होगी। तुम अभी दिल्ली शिफ्ट हुई हो | इस पत्र के माध्यम से तुम्हें स्वच्छता का महत्व बताना चाहती हूं | मैं इन गर्मियों की छुट्टी में पार्वतीय स्थल घुमने गई थी | इस आनन्द का अवसर मुझे गर्मियों के अवकाश में मिला| मैंने अपनी सर्दी के छुटियों में बहुत सारी मस्ती और मज़ा किया। मैं अपने परिवार के साथ शिमला गई थी। हम वंहा एक हफ्ता रुके। हम रात को बहार तंबू लगा के सोए| यह मुझे बहुत रोचक घटना लगी| बहुत मज़ा आया रात बहार| ठंडी हवाए बहुत अच्छी लग रही थी। हम वहाँ जाखू मंदिर और तारा देवी गये। कुफरी , नाल्देहरा जंहा इतनी अच्छे पहाड़ और शान्तिः मैं मज़ा आ गया सब देखने का।

अपने अगले पत्र में अपने छुटियों के बारे में ज़रूर बताना।

तुम्हारी सहेली,

मोनिका  |

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