gandhi ji ahinsa ke pryay
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ha gandhi Ji ahinsa ke pryay
Yadavsatyam628:
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अपने देश में गांधी 1915 में लगभग अजनबी की हैसियत से संयोगवश ही लौटे. कानून के पेचीदे पेशे ने उनके अन्त:करण को उद्वेलित किया और वे स्वार्थ की पगडंडियों से भटकते-भटकते लोकसेवा के राजमार्ग पर आ खड़े हुए. उन्होंने व्यक्तिगत और सार्वजनिक जीवन में मनुष्य की आन्तरिक और बाह्य प्रकृति तथा चिन्तन और कर्म के सभी क्षेत्रों में नैतिक आदर्शों के अंतर और विसंगतियों को खत्म कर दिया. यहाँ तक कि प्रथम विश्व युध्द के दिनों में बर्तानवी हुकूमत की मजबूरी का फायदा उठाने के बजाय उन्होंने स्वयं को सेवा के लिए उपस्थित किया था क्योंकि यह अहिंसा की मूल भावना के विरुध्द था. परन्तु अंग्रेजों द्वारा पराधीन भारतीयों की भावना की खिल्ली उड़ाने पर वे देश के अगुवा के रूप में अपना अहिंसा-दर्शन लेकर सामने आये. बापू ने राजनीति की व्यावसायिकता के रुख का परिहार किया.
बलवान की अहिंसा की जरुरत

एक तरफ तो जबान महात्मा गांधी और अहिंसा की आरती उतारे और दूसरी तरफ बन्दूकें और तलवारें खुद अपनी जनता के ऊपर चलती रहें. नये हिन्दुस्तान की बुनियाद में निर्बल की नहीं बलवान की अहिंसा की जरूरत की वकालत गांधी ने की.
बारदोली में पीड़ित किसानों के संगठित अहिंसक विद्रोह ने न केवल अंग्रेजी राज बल्कि औपनिवेषिक और साम्राज्यवादी विचारधाराओं को ही नष्ट करने का संकेत सूत्र प्रदान किया. कांग्रेस के चवन्नी सदस्य नहीं रहते हुए भी वे कांग्रेस के माध्यम से (भी) सम्पूर्ण भारत के सबसे सच्चे प्रतिनिधि थे. लेकिन गांधी का चित्र केवल राजनीतिक कैनवास पर खींचने का प्रयास हास्यास्पद ही होगा. राजनीति वस्तुत: उनका आखिरी चयन था. अन्याय के खिलाफ लड़ने की उनकी स्वाभाविक जिद ने उन्हें देश का राजनीतिक संदर्भ चुनने पर विवश कर दिया था.
महानता एक तरह से किसी व्यक्तित्व का चरमोत्कर्ष तो है परंतु वह हीनतर व्यक्तित्वों का मनोवैज्ञानिक शोषण भी है. महानता में एक तरह का सात्विक अहंकार और नैतिक अहम्मन्यता का पुट अपने आप गुंथ जाता है. एकांगी महान व्यक्ति किसी क्षेत्र में इतना ऊँचा हो जाता है कि बाकी लोग बौनों की तरह उसकी ओर टकटकी लगाए रहते हैं. गांधी अलग तरह के महान व्यक्ति थे. उन्होंने सदैव व्यापारिक कुशलता बरती कि उनमें कहीं देवत्व, पांडित्य या आसमानी अंश नहीं उग आएँ. यह कहना मुश्किल है कि अपनी किसी तरह की महानता का बोध उन्हें नहीं रहा होगा क्योंकि उन्होंने सतर्क रहकर बार-बार इस बात के विपरीत उल्लेख किये हैं.
गांधी असल में महान बनने के बदले भारत के हर खेत में इंसानियत की फसल उगाने के फेर में थे. उन्होंने अपने चरणों का उपयोग दूसरों के सिर पर रखने के बदले सड़कें और पगडंडियाँ नापने में किया. उन्होंने धवल, भगवा या भड़कीले वस्त्र पहनने के बदले वस्त्रों की न्यूनता को ही आकर्षक बनाया. उन्होंने अपने शरीर का धूल, मिट्टी और पसीने से श्रृँगार किया. यह पहली बार हुआ जब आराध्य अपने भक्तों के मुकाबले दिखाऊ नहीं बना. गांधीजी प्रखर, प्रभावशाली या निर्णायक दिखने तक से परहेज करते थे. उनके लेखे विनम्रता सायास हथियार भी नहीं थी. वह उनका नैसर्गिक गुण थी. नैसर्गिक जन्मजात के अर्थ में नहीं, उनकी व्यापक रणनीति की केन्द्रीय संवेदना के अर्थ में. उन्हें भीरुता, कायरता तथा हीन आत्मसमर्पण से बेसाख्ता नफरत थी. यह कहना सरल नहीं है कि वे इसी नस्ल और क्रम के औरों की तरह अहिंसा के प्रवर्तक पुरोहित थे.
गांधीजी ने वस्तुत: अहिंसा को महसूस करने वाले तत्व के बदले लोक हथियार के रूप में तब्दील किया था. अन्य महापुरुषों की शिक्षाओं से आगे बढ़कर उन्होंने व्यक्तिगत अहिंसा के साथ-साथ समूहगत अहिंसा के कायिक प्रदर्शन का पुख्ता उदाहरण भी पेश किया है. यही वह बीजगणित है जो गांधीजी को आज तक हमारे सामाजिक व्यवहार का ओसजन बनाये हुए है.
कहा जाता है कि गांधी की अहिंसा की बात करने से मन का मैल निकलता है. क्या है अहिंसा? एक तरफ तो जबान महात्मा गांधी और अहिंसा की आरती उतारे और दूसरी तरफ बन्दूकें और तलवारें खुद अपनी जनता के ऊपर चलती रहें. नये हिन्दुस्तान की बुनियाद में निर्बल की नहीं बलवान की अहिंसा की जरूरत की वकालत गांधी ने की. उन्होंने कहा था-''सारा समाज अहिंसा पर उसी प्रकार स्थिर है, जिस प्रकार गुरुत्वाकर्षण से पृथ्वी अपनी स्थिति में बनी हुई है. लेकिन दुर्भाग्यवश हिंसा को जीवन का शाश्वत नियम बना दिया गया है. मैं विश्वव्यापी अहिंसा का हिमायती हूँ परन्तु मेरा प्रयोग हिन्दुस्तान तक ही सीमित है. जब तक प्रजातंत्र का आधार हिंसा पर है, तब तक वह दीन-दुर्बलों की रक्षा नहीं कर सकता. संसार में आज एक भी देश ऐसा नहीं है जहाँ कमजोरों के अधिकार की रक्षा कर्तव्य के रूप में होती है. अगर गरीबों के लिए कुछ किया भी जाता है तो वह कृपा के रूप में किया जाता है. आजादी की लड़ाई में हमने कमजोरों की अहिंसा का भी उपयोग किया लेकिन आजाद हिन्दुस्तान में हमारा उद्देश्य बलवान की अहिंसक लड़ाई का विकास करना है''.
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