Ganga avtaran Ki pauranik Katha Tyag Tapasya aur Shahad ka Sandesh kis Prakar Deti Hai Kallu kumhar ki unakoti ke Aadhar par Uttar teacher class 9
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गंगा के शिव की जटाओं में उतरने का आशय
नवभारत टाइम्स | Updated Jul 10, 2013, 01:00 AM IST
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अश्विनी शास्त्री ।।
हिंदू मायथोलॉजी में गंगा के बारे में दो कहानियां बहुत महत्वपूर्ण हैं। एक तो यह कि जब वे स्वर्ग से इस पृथ्वी पर उतरीं तो उन्हें थामने के लिए शिव को अपनी जटाएं खोलनी पड़ीं। दूसरी यह कि शाप से भस्म हुए जो साठ हजार सगर पुत्र उनकी राह में आए, उन सबको मुक्ति मिल गई।
पुराणों में वर्णन आता है कि राजा सगर के साठ हजार पुत्र थे। उन्होंने खेल-खेल में उच्छृंखलता पूर्वक कपिल मुनि की तपस्या में बाधा डाली। कपिल मुनि कहीं शांत, निर्जन स्थल पर बैठ कर अपनी साधना कर रहे थे। सगर पुत्रों के आचरण से दुखी हो कर उन्होंने शाप दिया और वे सभी वहीं जल कर भस्म हो गए।सगर पुत्रों को मुक्ति दिलाने के लिए उनके वंशज राजा भगीरथ ने अपना राजपाट छोड़ कर ब्रह्मा की तपस्या की और उनसे अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए मां गंगा को पृथ्वी पर भेजने का वरदान मांगा।
तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने हां तो कर दी, किंतु भगीरथ को एक परामर्श भी दिया। उन्होंने कहा कि गंगा का वेग बहुत प्रचंड है। यदि वह स्वर्ग लोक से उतरकर सीधे पृथ्वी पर आएगी, तो पूरी पृथ्वी को ही बहा ले जाएगी।इसलिए भगीरथ से कहा कि तुम अपनी तपस्या से भगवान महादेव को प्रसन्न कर लो। वे गंगा को अपनी जटाओं में धारण करने की स्वीकृति दे देंगे। ऐसा होने से गंगा का वेग मध्यम हो जाएगा और तब वह पृथ्वी पर धीरे से अवतरित होगी। इस सलाह के बाद भगीरथ ने शिव को अपनी कठिन तपस्या से प्रसन्न किया और उनसे गंगा को अपने सिर पर धारण करने की प्रार्थना की। इस के बाद ही स्वर्ग से गंगा का अवतरण भगवान शिव की जटाओं में हुआ और वहां से वह हिमालय के गोमुख में प्रगट हुई।
khushboo18:
it's not my correct answer
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