गद्यांश में से पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए- 6
तयकत की बयत छोडो, अभ् ससांह ! प्रत््ेक रयिपूत को अपनी तयकत पर नयि है। इतने बडे दांभ को
मेवयड अपने प्रयणों में आश्र् न दे , इसी में उसकय कल््यण है। रह गई बयत एक मयलय मे गूांथने की तो
वह मयलय तो बनी है हयां इस मयलय को तोडने कय श्री गणेश हो ग्य है
1 उप्ुक्त कथन ककसने तथय ककस सांदभभ में कहय है ?
2 अभ् ससांह कय पररच् दीजिए। वह क््य सांदेश लेकर आए हैं?
3 वक्तय ने असभ्यन ससहां से ककस प्रकयर के अनुशयसन को मयनने की बयत कही?
4 “वह मयलय तो बनी हुई है, हयां उस मयलय को तोडने कय श्रीगणेश हो ग्य है ।“ आश् स्पष्ट
कीजिए
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༺ศསຮཡཛཞ༻
पंत जी का मूल नाम गोसाँई दत्त था। इनका जन्म 1900 ई. में उत्तरांचल के अल्मोड़ा जिले के कौसानी नामक स्थान पर हुआ। इनकी प्रारंभिक शिक्षा कौसानी के गाँव में तथा उच्च शिक्षा बनारस और इलाहाबाद में हुई। युवावस्था तक पहुँचते-पहुँचते महात्मा गाँधी के असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर इन्होंने पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी। उसके बाद वे स्वतंत्र लेखन करते रहे। साहित्य के प्रति उनके अविस्मरणीय योगदान के लिए इन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। इन्हें भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार मिले। भारत सरकार ने इन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया। इनकी मृत्यु 1977 ई. में हुई।
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