World Languages, asked by vp954063, 6 months ago

घ)
1857 ई० में हिमाचल प्रदेश में हुए विद्रोह के क्या प्रभाव पड़े।
ङ) बिलासपुर के 'झुग्गा सत्याग्रह' के बारे में आप क्या जानते हैं?
च) भूमि लगान के संदर्भ में 19वीं व 20वीं शताब्दी में कौन-कौन से प्रमुख
आन्दोलन हुए?​

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Answered by Anonymous
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राजा अमर चंद कुशल प्रशासक नहीं था। वजीर और कर्मचारी अत्याचारी और भ्रष्ट थे। प्रशासन अस्त-व्यस्त था। मनमाने ढंग से भूमि लगान में प्रशासन परिवर्तन करता था। प्रजा ने आंदोलन का मार्ग अपनाया…

झुग्गा सत्याग्रह

1883 ई. में बिलासपुर रियासत में हुए हृदय विदारक और अहिंसात्मक सत्याग्रह का उद्देश्य आत्मोत्पीड़न और आत्मदाह द्वारा राजा और उसके प्रशासन के अत्याचारों और तानाशाही के प्रति विरोध करना था। राजा अमर चंद कुशल प्रशासक नहीं था। वजीर और कर्मचारी अत्याचारी और भ्रष्ट थे। प्रशासन अस्त-व्यस्त था। मनमाने ढंग से भूमि लगान में प्रशासन परिवर्तन करता था। प्रजा ने आंदोलन का मार्ग अपनाया। रियासत के ब्राह्मणों और पुरोहितों ने प्रजा से प्रशासन के विरुद्ध आवाज उठाने का अनुरोध किया। ब्राह्मण जनता के पथ प्रदर्शक और पूज्य थे। जनता की प्रार्थना पर वे एकत्रित हुए और राजा के साथ मिलकर उन्होंने आंदोलन की योजना बनाई।

कोट, लुलहाण, नाड़ा, गेहड़वीं और पंडतेहड़ा आदि गांवों के ब्राह्मण गेहड़वीं गांव में परंपरा के अनुसार एकत्रित हुए। जनता की सहायता से झुग्गे (घास-फूंस की झोपडि़यां) बनाईं। झुग्गों के ऊपर अपने कुलदेव के झंडे लगाए और झुग्गों में रहने लगे। कष्ट और क्लेश सहन करते रहे। यह सत्याग्रह आंदोलन था। देवी-देवता की धार्मिक शक्ति से प्रशासन में न्याय और सदाचार की भावना जगाना सत्याग्रह का उद्देश्य था। प्रशासन ने सत्याग्रहियों की पीड़ा नहीं समझी। राजा अमर चंद ने तहसीलदार निरंजन सिंह को पुलिस गार्द के साथ गेहड़वीं भेजकर सत्याग्रहियों को गिरफ्तार करने का आदेश दिया। पुलिस गार्द के आने की सूचना मिलते ही सत्याग्रहियों ने झुग्गों में आग लगा दी। देखते-देखते कुछ आंदोलनकारी उसमें जल गए। हृदय विदारक दृश्य को देख एकत्रित आंदोलनकारी प्रजा भड़क उठी। शांतिप्रिय सत्याग्रह ने उग्र रूप ले लिया। मुठभेड़ में अनेक आंदोलनकारी शहीद हुए। प्रजा के नेता गुलाबा राम नड्डा ने गार्द के कमांडर निरंजन सिंह को गोली मार दी। लोगों ने घायल निरंजन सिंह को जलते हुए झुग्गों में फेंक दिया। राजा ने ब्रिटिश सरकार से सहायता लेकर विद्रोह को दबा दिया। काफी संख्या में ब्राह्मण परिवार रियासत छोड़कर कांगड़ा चले गए। विद्रोह के नेता गुलाबा राम को छह साल की सजा देकर सरीऊन किले में बंदी बना दिया गया।

Answered by ushajosyula96
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पाइक विद्रोह (1817 ई.) उड़ीसा में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के विरुद्ध एक सशस्त्र विद्रोह था। पाइक लोगों ने भगवान जगन्नाथ को उड़िया एकता का प्रतीक मानकर बख्शी जगबन्धु के नेतृत्व में 1817 ई. में यह विद्रोह शुरू किया था। शीघ्र ही यह आन्दोलन पूरे उड़ीसा में फैल गया किन्तु अंग्रेजों ने निर्दयतापूर्वक इस आन्दोलन को दबा दिया। बहुत से वीरों को पकड़ कर दूसरे द्वीपों पर भेज कर कारावास का दण्द दे दिया गया। बहुत दिनों तक वन में छिपकर बक्सि जगबन्धु ने संघर्ष किया किन्तु बाद में आत्मसमर्पण कर दिया।

कुछ इतिसकार इसे 'भारत का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम' की संज्ञा देते हैं।

1857 का स्वाधीनता संग्राम जिसे सामान्य तौर पर भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम माना जाता है, उसे पाठ्यपुस्तकों में बदलने की तैयारी की जा रही है. अब 1857 की क्रांति से पहले हुआ 1817 का पाइका विद्रोह पहला संग्राम माना जाएगा. केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावडेकर ने कहा है कि 1817 के पाइका विद्रोह को अगले सत्र से इतिहास की पाठ्य पुस्तकों में 'प्रथम स्वतंत्रता संग्राम' के रुप में स्थान मिलेगा. आइए जानते हैं क्या है पाइका बिद्रोह.

1817 में ओडिशा में हुए पाइका बिद्रोह ने पूर्वी भारत में कुछ समय के लिए ब्रिटिश राज की जड़े हिला दी थीं. मूल रूप से पाइका ओडिशा के उन गजपति शाषकों के किसानों का असंगठित सैन्य दल था, जो युद्ध के समय राजा को सैन्य सेवाएं मुहैया कराते थे और शांतिकाल में खेती करते थे. इन लोगों ने 1817 में बक्शी जगबंधु बिद्याधर के नेतृत्व में ब्रिटिश राज के विरुद्ध बगावत का झंडा उठा लिया.

खुर्दा के शासक परंपरागत रूप से जगन्नाथ मंदिर के संरक्षक थे और धरती पर उनके प्रतिनिधि के तौर पर शासन करते थे. वो ओडिशा के लोगों की राजनीतिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता का प्रतीक थे. ब्रिटिश राज ने ओडिशा के उत्तर में स्थित बंगाल प्रांत और दक्षिण में स्थित मद्रास प्रांत पर अधिकार करने के बाद अंग्रेजों ने 1803 में ओडिशा को भी अपने अधिकार में कर लिया था. उस समय ओडिशा के गजपति राजा मुकुंददेव द्वितीय अवयस्क थे और उनके संरक्षक जय राजगुरु द्वारा किए गए शुरुआती प्रतिरोध का क्रूरता पूर्वक दमन किया गया और जयगुरु के शरीर के जिंदा रहते हुए ही टुकड़े कर दिए गए.

इसके बाद दमन का व्यापक दौर चला जिसमें कई लोगों को जेल में डाला गया और अपनी जान भी गंवानी पड़ी. बहुत बड़ी संख्या में लोगों को अत्याचारों का सामना करना पड़ा. कई विद्रोहियों ने 1819 तक गुरिल्ला युद्ध लड़ा, लेकिन अंत में उन्हें पकड़ कर मार दिया गया. बक्शी जगबंधु को अंतत: 1825 में गिरफ्तार कर लिया गया और कैद में रहते हुए ही 1829 में उनकी मृत्यु हो गई.

हालांकि पाइका विद्रोह को ओडिशा में बहुत उच्च दर्जा प्राप्त है और बच्चे अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई में वीरता की कहानियां पढ़ते हुए बड़े होते हैं, लेकिन दुर्भाग्य से इस विद्रोह को राष्ट्रीय स्तर पर वैसा महत्व नहीं मिला जैसा कि मिलना चाहिए था. ऐसी महत्वपूर्ण घटना को इतना कम महत्व दिए जाने के पीछे कई कारण हो सकते हैं, लेकिन यह संतोष की बात है कि भारत सरकार ने इस विद्रोह को समुचित पहचान देने के लिये इस घटना की 200वीं वर्षगांठ को उचित रूप से मनाने का निर्णय लिया है.

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