(घ) फ्रैंकफर्ट संसद
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शाब्दिक अर्थ - फ्रैंकफर्ट राष्ट्रीय सभा) जर्मनी की पहली, सभी के लिए, स्वतन्त्र रूप से चुनी गई, संसद थी। इसका चुनाव ०१ मई १८४८ को हुआ था। इसका सत्र १८ मई १८४८ से ३१ मई १८४८ तक फ्रैंकफर्ट एम मेन (Frankfurt am Main) में सम्पन्न हुआ। जर्मन कॉनफेडरेशन के राज्यों के भीतर इसका अस्तित्व "मार्च क्रांति" का हिस्सा भी था और परिणाम भी।
1848-49 में फ्रैंकफर्ट संसद की बैठक का दृष्य; ध्वज पर पीला रंग समकालीन कल्पना का है।
जर्मनी में ऐसे कई राजनैतिक गठबन्धन थे जिनके सदस्य मध्यमवर्गीय पेशेवर, व्यापारी और धनी कलाकार हुआ करते थे। वे फ्रैंकफर्ट शहर में एकत्रित हुए और एक सकल जर्मन सभा के लिए म्तदान करने का निर्णय लिया।18 मई 1848 को 831 चुने हुए प्रतिनिधियों ने जश्न मनाते हुए एक जुलूस निकाला और फ्रैंकफर्ट पार्लियामेंट की ओर चल पड़े जिसका आयोजन सेंट पॉल के चर्च में किया गया था। उन्होंने एक जर्मन राष्ट्र का संविधान तैयार किया। उस राष्ट्र की कमान कोई राजपरिवार का सदस्य करता जो पार्लियामेंट के प्रति उत्तरदायी होता। इन शर्तों पर प्रशा के राजा फ्रेडरिक विलहेम (चतुर्थ) को वहाँ का शासन सौंपने का प्रस्ताव किया गया लेकिन उसने इस अनुरोध को ठुकरा दिया और उस चुनी हुई संसद का विरोध करने के लिए अन्य राजाओं से हाथ मिला लिया।
अभिजात वर्ग और सेना द्वारा पार्लियामेंट का विरोध बढ़ता ही गया। इस बीच पार्लियामेंट का सामाजिक आधार कमजोर पड़ने लगा क्योंकि उसमें मध्यम वर्ग का दबदबा था। मध्यम वर्ग मजदूरों और कारीगरों की माँग का विरोध करता था और इसलिए उसे उनके समर्थन से हाथ धोना पड़ा। आखिरकार सेना बुलाई गई और इस तरह से एसेंबली को समाप्त कर दिया गया।
इस उदारवादी आन्दोलन में महिलाओं ने भी भारी संख्या में हिस्सा लिया। इसके बावजूद, एसेंबली के चुनाव में उन्हें मताधिकार नही दिया गया। जब सेंट पॉल के चर्च में फ्रैंकफर्ट पार्लियामेंट बुलाई गई तो महिलाओं को केवल दर्शक दीर्घा में बैठने की अनुमति मिली।
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