(घ) "जिस दिन तुम आए थे, कहीं अन्दर-ही-अन्दर मेरा बटुआ कांप उठा था।" लेखक ने ऐसा क्यों कहा?
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वह अतिथि को यह बताना चाहता था कि उन्हें लेखक के घर आए कितने दिन हो गए। उस दिन जब तुम आए थे, मेरा हृदय किसी अज्ञात आशंका से धड़क उठा था। अन्दर ही अन्दर कहीं मेरा बटुआ काँप गया। ... आशा थी कि दूसरे दिन किसी रेल से एक शानदार मेहमाननवाजी की छाप अपने हृदय में ले तुम चले जाओगे।
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