Hindi, asked by naveenpeter8927, 9 days ago

घोर अंधकार हो, चल रही बयार हो,आज द्वार-द्वार पर यह दिया बुझे नहीं।यह निशीथ का दिया ला रहा विहान है।शक्ति का दिया हुआ, शक्ति को दिया हुआ,भक्ति से दिया हुआ, यह स्वतंत्रता का दिया,रुक रही न नाव हो, जोर का बहाव हो,आज गंगधार पर यह दिया बुझे नहीं!यह स्वदेश का दिया प्राण के समान है। सप्रसंग भावार्थ लिखिए।​

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Answered by premendrapandey123
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घोर अंधकार चल रही है यारों आज द्वार द्वार पर यह दिया बुझे नहीं यह निशीथ का दिया ला रहा विहान शक्ति का दिया हुआ शक्ति को दिया हुआ भक्तों से दिया हुआ यह स्वतंत्रता दिया रुक रही है नागौर का भाव आज

Answered by bhatiamona
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घोर अंधकार हो, चल रही बयार हो,आज द्वार-द्वार पर यह दिया बुझे नहीं।यह निशीथ का दिया ला रहा विहान है।शक्ति का दिया हुआ, शक्ति को दिया हुआ,भक्ति से दिया हुआ, यह स्वतंत्रता का दिया,रुक रही न नाव हो, जोर का बहाव हो,आज गंगधार पर यह दिया बुझे नहीं!यह स्वदेश का दिया प्राण के समान है।

सप्रसंग भावार्थ लिखिए।​

सप्रसंग : ये पंक्तियां कवि गोपाल प्रसाद नेपाली द्वारा रचित कविता ‘ये दिया बुझने न देना’ से ली गयी हैं। इन पंक्तियों कवि ने स्वतंत्रता की लौ को जलाये रखने को प्रेरित किया है।

भावार्थ : कवि किसी भी कीमत पर स्वतंत्रता का मोल नहीं करने के लिए कह रहा हैय़ कवि के अनुसार स्वतंत्र अनमोल होती है, इसलिए चाहे चारों तरफ घोर अंधकार क्यों न छा जाये। चाहें तेज-तेज आंधियाँ क्यों न चले। लेकिन हर भारतीय का यह कर्तव्य है कि वह अपने हृदय के द्वार पर जलता हुआ स्वतंत्रता का दिया कभी भी बुझने नही दे।

चाहे कितनी भी कठिन और विषण परिस्थितियां क्यों ना आए। व्यक्ति स्वतंत्रता की लौ को जलाए रखें। स्वतंत्रता के दिये का यही प्रकाश है, जिसने हमें अंधकार रूपी परतंत्रता से मुक्ति दिलाई है और हमारे जीवन में स्वतंत्रता रूपी प्रकाश भरा है।

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