Hindi, asked by laxmijadhav251, 4 months ago

घना अंधेरा
चमकता प्रकाश
और अधिक !

करते जाओ,
पाने की मत सोचो .
जीवन सारा !

जीवन नैया
मझधार में डोले
संभाले कौन ?

रंग-बिरंगे
रंग-संग लेकर ,
आबा फागुन !
उपयुक्त पद्यांश से किसी 4 पंक्तियों का 25 से 30 शब्दों में सरल अर्थ लिखिए:... ​

Answers

Answered by sawisha8
11

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'मन' हाइकु के भावार्थ

१.

घना अँधेरा,

चमकता प्रकाश,

और अधिक।

जिस तरह शाम ढलते ही निशा अँधेरे से घिर जाती है और अंधकार का अधिराज्य निर्माण होता है। ऐसे वक्त कभी-कभी एखाद दीप या जुगनू चमककर अँधेरे को छेद देने की कोशिश करता है तब वह अंधकार में सामान्य से और भी अधिक चमकता है। उसी प्रकार हर मनुष्य के जीवन में अनगिनत अंधकार (विपत्तियाँ) होता है, परंतु जो मनुष्य इस अधंकार को छेद देने की ताकद रखता है वह मनुष्य प्राणी जीवन के अंधकार में भी और चमकेगा तथा श्रेष्ठत्व प्राप्त करेगा। बस उसमें निडरता और हौसला चाहिए।

२.

करते जाओ,

पाने की मत सोचो,

जीवन सारा।

संस्कृत के 'कर्मण्ये वाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचनं' इस सुवचन के अनुसार ही परिहार जी ने जीवन का सही सार बताने की कोशिश की है। हमें अपने जीवन में कर्मरत रहकर क्रिया-कलाप करते रहना चाहिए। फल कभी-न-कभी मिल ही जाएगा। यदि फल के बारे में सोचते रहे तो कर्म और जीवन का आनंद गवाँ बैठेंगे। तो बस काम करते जाओ, फल तो अपने - आप मिल जाएगा। किसी ने सही कहा है - 'काम करेंगे-काम करेंगे, जग में हम कुछ नाम करेंगे।'

३.

जीवन नैया,

मँझधार में डोले,

संभाले कौन।

माना कि यह दुनिया असीम समुंदर है तो हर मनुष्य प्राणी का जीवन उस समुंदर में चल पड़ी नैया (नाव) है। जब अपना जीवन-यापन करते हैं तो संसार में अनगिनत बाधाएँ समुंदर के तूफान की भाँति आएगी और कमजोर नाव को जिस तरह निगल जाता है उसी तरह तुम्हारे जीवन को भी निगल जाएगा। अर्थात मनुष्य का जीवन समाप्त होगा। अब हर एक को समझना चाहिए कि दुनिया में अपने जीवन की बागडौर खुद को ही संभालनी होगी। अपनी जिंदगी में कितने ही तूफान क्यों न आए, अपनी नैया किनारे (मोक्ष अथवा सफलता के) पार लगानी ही होगी। यहाँ कोई आपकी मदद करनेवाला नहीं होगा ? हाइकुकार ने वही सवाल पूछा है - तुम्हारी जीवन नैया कौन संभालेगा ?

४.

रंग-बिरंगे,

रंग-संग लेकर,

आया फागुन।

इस हाइकु में प्रकृति के बदलाव का वर्णन करते हुए फागुन माह के दिन कुदरत में बिखरे रंगों की ओर निर्देशित करते हुए फागुन माह का विशेष महत्त्व, फूलों को लेकर प्रतिपादित किया है। (टिपण्णी-अध्यापक विस्तारित रूप से फागुन की जानकारी से छात्रों को अवगत कराए। )

५.

काँटों के बीच,

खिलखिलाता फूल,

देता प्रेरणा।

प्रस्तुत हाइकु में जीवन में संघर्ष एवं समस्याओं का महत्त्व प्रतिपादित करते हैं । जैसे गुलाब का फूल काँटों में भी रहकर खिलता है तो अधिक सुंदर तो लगता है साथ ही अपनी सुगंध चारों ओर फैलाता भी है। इसी तरह को मनुष्य को अपने जीवन में आयीं बाधाओं (काटों) को सहजता से स्वीकार कर आगे बढ़ना चाहिए। तभी हम अपने जीवन को सुंदर और कार्य से सुगंधित कर सकते है, जो आगे जाकर किसी के लिए प्रेरणादायी बन जाएगा। जैसे - 'रुकनेवाला पानी सड़ता, रुकनेवाला पहिया डाटा, रुकनेवाली कलम न चलती और विशेष बात-रुकनेवाली घड़ी न चलती।' समस्याओं को पहचानकर सामना करें।

६.

भीतरी कुंठा,

आँखों के द्वार से,

आई बाहर।

कहा जाता है कि मनुष्य नहीं उसकी आँखें और चेहरा बोलता है। जब मनुष्य खुश होता है तो चेहरे पर अनोखी चमक दिखाई देती है उसी तरह मनुष्य के जीवन की निराशा जन्य अतृप्ति की भावनाएँ (कुंठा) उसके चेहरे पर एवं आँखों में उतरती है। उस मनुष्य का जीवन कितनी निराशा से भरा है, इसका पता चलता है। ऐसे वक्त उन्हें प्रेरित कर जीवन की आदर्शता से अवगत करे। महत्वपूर्ण बात यह है कि हर एक को मनुष्य के चेहरे तथा आँखे पढ़नी आनी चाहिए।

७.

खारे जल से,

धूल गए विषाद,

मन पावन।

जो मनुष्य गलती करता है, उसे तो चोट पहुँचनी ही है। धरती के सभी मनुष्यों का स्वभाव एक जैसा नहीं होता। जो समझदार, अपने जीवन के प्रति आस्था, कर्म के प्रति निष्ठा रखनेवाले अच्छे काम करते रहते हैं परंतु भूल से या नासमझी से गलती हो जाती है और मन में असंतोष एवं रिश्तों में दूरता आ जाती है। परंतु अपनी भलाई चाहनेवाले (अभिभावक, गुरुजन) आपको कड़वी बातें (खारा जल) जो हमारे हित में होती है, वे करते हैं। जब सही और गलत का फर्क हमारी समझ में आ जाता हैं तो मन के सारे दुःख (विषाद, निराशा) दूर हो जाते हैं और हमारा मन, सोच एवं व्यवहार में पवित्रता आ जाती है। हम सभी को याद रखना होगा कि अपनी भलाई के लिए की कड़वी बातें हमेशा मीठी होती हैं।

८.

मृत्यु को जीना,

जीवन विष पीना,

है जिजीविषा।

मनुष्य को इस बात को समझना होगा कि जीवन जहर (अनगिनत बाधाओं एवं समस्याओं) से भरा है और इस जहर को पीकर उसे अमृत में परावर्तित कर जीवन को बेहतर बनाना ही जिंदगी है और बेहतर बनाएँगे। यह जीने का मकसद और आकांक्षा होनी चाहिए। मृत्यु जिस प्रकार अंतिम सत्य कहा जाता है तो इसे ही जिंदगी बनाकर जीने का जज्बा रखना होगा। तभी जीवन सफल हो जाएगा।

९.

मन की पीड़ा,

छाई बन बादल,

बरसी आँखें।

मनुष्य स्वभाव की विशेषताएँ बताते हुए इस हाइकू में कहा है कि मनुष्य का मन / सोच जब भी वेदना, कठिनाई (पीड़ा) आदि महसूस करती है तो स्वाभाविक उसकी आँखों से पानी (आँसू ) बरसता है। हमें मनुष्य के दुःख से दुखी और सुख से सुखी होना चाहिए। परंतु हमें दूसरों के दुःख दूर करने की कोशिश हरहाल करनी चाहिए। (टिपण्णी- इसी कविता की हाइकु क्रमांक ६ के समान ही इसके भाव प्रकट होते हैं।)

१०.

चलती साथ,

पटरियाँ रेल की,

फिर भी मौन।

मनुष्य जीवन में सुख और दुःख रेल की पटरी की तरह होते हैं। रेल की पटरिया साथ में चलती है परंतु कभी एक नहीं होती। और जहाँ होती है वहाँ रेल नहीं होती। उसी तरह मनुष्य के जीवन सुख-दुःख बराबर साथ-साथ चलते है पर एक नहीं होते और जहाँ होते हैं वहाँ उसके अस्तित्व पर आशंका उपस्थित की जाती है। जैसे नदी के दो तीर। कभी एक नहीं होते जब पानी सुख जाता है तो उसके दो तीर रहते ही नहीं और उसे नदी को नदी नहीं कहा जाएगा। नाम की नदी रहेगी पर उसके अस्तित्व पर आशंका उठती है। मनुष्य को सुख-दुःख को समान रूप में जानकर स्वीकार करें और जीवन जिए।

Answered by shaikhkashif2244
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Answer:

जीवन ----- माँझधार में डोले, संभाले कौन ?

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