Hindi, asked by yp6397638, 5 hours ago

घन घमंड नभ गरजत घोरा। प्रिया होन डरपत मन मोरा।।
दामिनि दमक रहहि घन माहीं। खल के प्रति जथा धिर नाहीं।।
बरसहि जलद भूमि निअराएँ। जथा नवहिं बुध विद्या पाएँ।
बूंद अघात सहाहे गिरि कैसे। खल के बचन संत सह जैसे।। भावार्थ​

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Answered by gsarju7
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Answer:

भावार्थ: आकाश में बादल घुमड़-घुमड़कर घोर गर्जना - कर रहे हैं, प्रिया (सीताजी) के बिना मेरा मन डर रहा है। बिजली की चमक बादलों में ठहरती नहीं, जैसे दुष्ट की प्रीति स्थिर नहीं रहती।बादल पृथ्वी के समीप आकर (नीचे उतरकर ) बरस रहे हैं, जैसे विद्या पाकर विद्वान् नम्र हो जाते हैं। बूँदों की चोट पर्वत कैसे सहते हैं, जैसे दुष्टों के वचन संत सहते हैं।

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