घनानंद के काव्य की भाव मुल्क समीक्षा कीजिए
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हिंदी के मध्यकालीन स्वच्छंद प्रवाह के प्रमुख कर्ताओं में सबसे अधिक साहित्यश्रुत घनआनंद ही प्रतीत होते है। इनकी रचना के दो प्रकार हैं : एक में प्रेमसंवेदना क अभिव्यक्ति है, और दूसरे में भक्तिसंवेदना की व्यक्ति। इनकी रचना अभिधा के वाच्य रूप में कम, लक्षणा के लक्ष्य और व्यंजना के व्यंग्य रूप में अधिक है। ये भाषाप्रवीण भी थे और व्रजभाषाप्रवीण भी। इन्होंने व्रजभाषा के प्रयोगों के आधार पर नूतन वाग्योग संघटित किया है।
उनकी रचनाओं में प्रेम का अत्यंत गंभीर, निर्मल, आवेगमय और व्याकुल कर देने वाला उदात्त रूप व्यक्त हुआ है, इसीलिए घनानंद को 'साक्षात रसमूर्ति' कहा गया है। घनानंद के काव्य में भाव की जैसी गहराई है, वैसी ही कला की बारीकी भी। उनकी कविता में लाक्षणिकता, वक्रोक्ति, वाग्विदग्धता के साथ अलंकारों का कुशल प्रयोग भी मिलता है। उनकी काव्य-कला में सहजता के साथ वचन-वक्रता का अद्भुत मेल है। घनानंद की भाषा परिष्कृत और साहित्यिक ब्रजभाषा है। उसमें कोमलता और मधुरता का चरम विकास दिखाई देता है। भाषा की व्यंजकता बढ़ाने में वे अत्यंत कुशल थे। वस्तुतः वे ब्रजभाषा प्रवीण ही नहीं सर्जनात्मक काव्यभाषा के प्रणेता भी थे।