घनानंद के काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए
Answers
Explanation:
घनानंद रीतिकालीन रीतिमुक्त काव्यधारा के शिखर पुरुष हैं। हिन्दी साहित्य में ये ‘प्रेम की पीर’ के कवि के रूप में प्रसिद्ध हैं। इनका साहित्य कई संवेदनात्मक व शैल्पिक विशिष्टताओं को धारण करता है।
संवेदनात्मक विशेषताएँ
इनका काव्य गहरी अनुभूतियों का काव्य है। इनकी अनुभूति कृत्रिम नहीं बल्कि स्वअर्जित अनुभवों से युक्त है। इसी संदर्भ में दिनकर लिखते हैं-
“दूसरों के लिये किराए पर आँसू बहाने वालों के बीच यह एक ऐसा कवि है जो सचमुच अपनी पीड़ा में ही रो रहा हैं।”
घनानंद मूलतः वियोग के कवि हैं। सुजान के प्रति जो इन्होंने विरह भोगा है वह इनके काव्य का मूल भाव है। शुक्ल ने लिखा है
"ये वियोग शृंगार के प्रधान कवि हैं।"
इनका शृंगार वर्णन अत्यंत गहरा व एकनिष्ठता से युक्त है। सुजान के रूप-सौंदर्य, लज्जा, व्यवहार आदि का अत्यंत मार्मिकता के साथ अंकन किया है। इनका काव्य प्रेम की एकनिष्ठता की प्रस्थापना करता है-
"अति सुधो सनेह को मारग है जहँ नेकु सयानप बांक नहीं"
इनका लौकिक प्रेम वर्णन अंत में अलौकिक रूप प्राप्त कर लेता है। सुजान के प्रति जो लौकिक प्रेम था वह कृष्ण-राधा के प्रति अलौकिक स्तर पर व्यक्त होने लगा-
"मेरी रूप अगाधे राधे, राधे, राधे, राधे, राधे
तेरी मिलिवे को ब्रजमोहन, बहुत जतन हैं साधे"
शिल्पगत विशेषताएँ
बिहारी सहित लगभग सभी कवियों ने ब्रज को अरबी, फारसी व अन्य स्थानीय शब्दावली से मिश्रित कर दिया है, वहीं घनानंद ने शुद्ध ब्रज का प्रयोग किया है। यह शुद्धता शब्द निर्माण व चयन के स्तर पर भी है।
शब्द शक्तियों के प्रयोग की दृष्टि से घनानंद का काव्य उत्कृष्ट है। लक्षणा व व्यंजना का बड़ा ही सटीक व सादा प्रयोग किया है। इसी प्रकार मुहावरों व लोकोक्तियों का प्रयोग भी द्रष्टव्य है।
घनानंद ने अलंकारों का प्रयोग अन्य रीतिकालीन कवियों की भाँति चमत्कार प्रदर्शन हेतु नहीं बल्कि अपने भावों को व्यक्त करने हेतु किया है-
विरोधाभास अलंकार- "उजरनि बसी है हमारी अँखियन देखो"
श्लेष अलंकार- "तुम कौन धौं पाटी पढ़े हो लला,
मन लेहु पै देहु छंटाक नहीं"
इस प्रकार स्पष्ट है कि घनानंद के यहाँ संवेदना व शिल्प दोनों स्तरों पर प्रयोगशीलता, सहजता व मौलिकता के दर्शन होते हैं।
Answer:
घनानंद रितिकाल की रितिमुक्ति काव्यधारा के प्रसिद्ध कवि थे।
Explanation:
घनानंद को हिंदी साहित्य जगत में प्रेम पीर के नाम से जाना जाता है। घनानंद साहित्यों में संवेदनात्मक और शिल्पगत विशिष्टता धारण की गई है।
संवेदनात्मक विशेषताएं:-
घनानंद का काव्य गहरी अनुभूतियों से बना है। इनकी अनुभूति कम नहीं बल्कि ज्यादा अनुभवों से मिलकर बनी है। इनके इसी संदर्भ में दिनकर लिखते हैं की जो दूसरे लोगो के लिये किराए पर आँसू बहाने वालों के बीच में यह एक ऐसा कवि है जो असलियत में अपनी पीड़ा में ही रो रहा हैं।
घनानंद वियोग के कवि के लिए प्रसिद्ध कवि थे।सुजान के लिए जो इन्होंने विरह भोगा है, वही इनके काव्ययो का मूल भाव है। और शुक्ल ने लिखा है, की घनानंद वियोग शृंगार के प्रसिद्ध कवि हैं।और इनका इसमें शृंगार का वर्णन बहुत गहरा व एकनिष्ठता से युक्त बना है। सुजान के रूप-सौंदर्य, लज्जा, व्यवहार आदि का बहुत ही सुंदर रूप से अंकन किया है, घनानंद काव्य प्रेम की और एकनिष्ठता की प्रस्थापना करता है।
शिल्पगत विशेषताएँ:-
बिहारी सहित लगभग सभी कवियों ने ब्रज को अरबी, फारसी व अन्य स्थानीय शब्दावली से मिश्रित कर दिया है, वहीं घनानंद ने शुद्ध ब्रज का प्रयोग किया है। यह शुद्धता शब्द निर्माण व चयन के स्तर पर भी है।
शब्द शक्तियों के प्रयोग की दृष्टि से घनानंद का काव्य उत्कृष्ट है। लक्षणा व व्यंजना का बड़ा ही सटीक व सादा प्रयोग किया है। इसी प्रकार मुहावरों व लोकोक्तियों का प्रयोग भी द्रष्टव्य है।
घनानंद ने अलंकारों का प्रयोग अपने भावों को व्यक्त करने हेतु किया था जैसे, विरोधाभास अलंकार- "उजरनि बसी है हमारी अँखियन देखो। और श्लेष अलंकार- "तुम कौन धौं पाटी पढ़े हो लला,
इसमें स्पष्ट रूप से दिखाई देता है की घनानंद ने संवेदना व शिल्प दोनों जगहों पर , सहजता, सहजता व मौलिकता के अद्भुत दर्शन होते हैं।
अतः सही उत्तर है, घनानंद रितिकाल की रितिमुक्ति काव्यधारा के प्रसिद्ध कवि थे।
#SPJ3