घर की मुर्गी दाल बराबर कहावत का अर्थ और वाक्य में प्रयोग कीजिए
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घर की मुर्गी दाल बराबर का अर्थ 'आसानी से प्राप्त वस्तु का मूल्य नहीं होता' होता है। वाक्य प्रयोग — कविता की मां के लिसे हुए कपंड़ों की सब प्रशंसा करते हैं। परंतु कविता हमेशा दूसरी ही जगह कपड़े सिलवाती है। ठीक ही कहा गया है, घर की मु्र्गी दाल बराबर।
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घर की मुर्गी दाल बराबर मुहावरे का अर्थ ghar ki murgi daal barabar muhavare ka arth – घर में जो वस्तु है उसका महत्व नही होना ।
दोस्तो आपने देखा होगा की जब भी कोई व्यक्ति खाने के लिए किसी सब्जी को शहर से लाता है तो उसे बडे चाव के साथ खाता है और उसे जरा भी फिजूल नही जाने देता है । क्योकी उस सब्जी को लाने मे बहुत पैसे खर्च हुए थे इस कारण से उस सब्जी का बहुत ही महत्व होता है ।
पर इसी के विपरीत घर मे मिलने वाली साधारण सी दाल को भी मानव जरा भी महत्व नही देता है । उसे फिजूल भी जाने देता है । क्योकी उस दाल को लाने मे उसके पैसे जो नही लगे ।
इसी तरह से मास खाने वाले लोग दुकानो से मुर्गी लाकर खाते है और जिसके कारण से उसका बहुत ही महत्व होता है । मगर वही मुर्गी अगर घर मे हो तो मानव उसका महत्व न कर कर अनाप सनाम खाता है और फिजूल भी कर देता है । इस तरह से घर मे दाल और मुर्गी समान हो जाती है
दोस्तो आपने देखा होगा की जब भी कोई व्यक्ति खाने के लिए किसी सब्जी को शहर से लाता है तो उसे बडे चाव के साथ खाता है और उसे जरा भी फिजूल नही जाने देता है । क्योकी उस सब्जी को लाने मे बहुत पैसे खर्च हुए थे इस कारण से उस सब्जी का बहुत ही महत्व होता है ।
पर इसी के विपरीत घर मे मिलने वाली साधारण सी दाल को भी मानव जरा भी महत्व नही देता है । उसे फिजूल भी जाने देता है । क्योकी उस दाल को लाने मे उसके पैसे जो नही लगे ।
इसी तरह से मास खाने वाले लोग दुकानो से मुर्गी लाकर खाते है और जिसके कारण से उसका बहुत ही महत्व होता है । मगर वही मुर्गी अगर घर मे हो तो मानव उसका महत्व न कर कर अनाप सनाम खाता है और फिजूल भी कर देता है । इस तरह से घर मे दाल और मुर्गी समान हो जाती है
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