Give 2 hindi poem on nadiya in hindi
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यदि हमारे बस में होता,
नदी उठाकर घर ले आते।
अपने घर के ठीक सामने,
उसको हम हर रोज बहाते।
कूद कूद कर उछल उछलकर,
हम मित्रों के साथ नहाते।
कभी तैरते कभी डूबते,
इतराते गाते मस्ताते।
' नदी आई है' आओ नहाने,
आमंत्रित सबको करवाते।
सभी उपस्थित भद्र जनों का,
नदिया से परिचय करवाते।
यदि हमारे मन में आता,
झटपट नदी पार कर जाते।
खड़े-खड़े उस पार नदी के,
मम्मी मम्मी हम चिल्लाते।
शाम ढले फिर नदी उठाकर,
अपने कंधे पर रखवाते।
लाए जहां से थे हम उसको,
जाकर उसे वहीं रख आते।
नदी
नदी निकलती है पर्वत से,
मैदानों में बहती है.
और अंत में मिल सागर से,
एक कहानी कहती है.
बचपन में छोटी थी पर मैं,
बड़े वेग से बहती थी.
आँधी-तूफान, बाढ़-बवंडर,
सब कुछ हँसकर सहती थी.
मैदानों में आकर मैने,
सेवा का संकल्प लिया.
और बना जैसे भी मुझसे,
मानव का उपकार किया.
अंत समय में बचा शेष जो,
सागर को उपहार दिया.
सब कुछ अर्पित करके अपने,
जीवन को साकार किया.
बच्चों शिक्षा लेकर मुझसे,
मेरे जैसे हो जाओ.
सेवा और समर्पण से तुम,
जीवन बगिया महकाओ.
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नदी उठाकर घर ले आते।
अपने घर के ठीक सामने,
उसको हम हर रोज बहाते।
कूद कूद कर उछल उछलकर,
हम मित्रों के साथ नहाते।
कभी तैरते कभी डूबते,
इतराते गाते मस्ताते।
' नदी आई है' आओ नहाने,
आमंत्रित सबको करवाते।
सभी उपस्थित भद्र जनों का,
नदिया से परिचय करवाते।
यदि हमारे मन में आता,
झटपट नदी पार कर जाते।
खड़े-खड़े उस पार नदी के,
मम्मी मम्मी हम चिल्लाते।
शाम ढले फिर नदी उठाकर,
अपने कंधे पर रखवाते।
लाए जहां से थे हम उसको,
जाकर उसे वहीं रख आते।
नदी
नदी निकलती है पर्वत से,
मैदानों में बहती है.
और अंत में मिल सागर से,
एक कहानी कहती है.
बचपन में छोटी थी पर मैं,
बड़े वेग से बहती थी.
आँधी-तूफान, बाढ़-बवंडर,
सब कुछ हँसकर सहती थी.
मैदानों में आकर मैने,
सेवा का संकल्प लिया.
और बना जैसे भी मुझसे,
मानव का उपकार किया.
अंत समय में बचा शेष जो,
सागर को उपहार दिया.
सब कुछ अर्पित करके अपने,
जीवन को साकार किया.
बच्चों शिक्षा लेकर मुझसे,
मेरे जैसे हो जाओ.
सेवा और समर्पण से तुम,
जीवन बगिया महकाओ.
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