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Shram ka Mahatva
मानव जीवन में श्रम का अपना महत्व है। आदिम युग के मानव ने जब पहलेपहल पृथ्वी पर कदम रखा था, तब उसके पास न तो रहने के लिए कोई मकानथा, ना आवागमन का कोई साधन और तो और न अपना तन ढकने के लिए कोई वस्त्र। आदमी जंगली जानवरों की भाँति ही अपना जीवन यापन करता था। अन्य जानवरों की ही तरह पहाड़ों की कंदराएँ उसके लिए उसका घर था, पेड़ों की छाल ही उसके वस्त्र थे।
आदमी और अन्य जंगली जानवरों में फर्क था तो केवल इतना कि उसमें सोचने-समझने की क्षमता थी, जिसकारण वह अन्य जानवरों से अलग होने लगा और दिन-ब-दिन विकास की सीढ़ियों को चढ़ता हुआ आज वैज्ञानिक युग तक पहुँच चुका है। जो जंगली जानवर पहले कभी उसके साथी हुआ करते थे वे आज उस के गुलाम बन चुके हैं।
आज के मानव के पास तो रहने के लिए एक-से-एक बढ़िया मकान, आवागमन के लिए हवा से बातें करती गाड़ियाँ, अपना तन ढ़कने के लिए एक से एक बढ़िया व कीमती वस्त्र उसके पास हैं।
अगर हम इतिहास के पन्ने पलट कर देखेंगे तो पाएंगे कि उस युग से इस युग तक आने के लिए उसने स्वयं श्रम किया जो किसी अन्य जानवर नहीं कर पाए और अभी भी वो जहाँ थे वहीं है और मानव प्रगति की राह पर श्रम की सीढ़ियाँ चढ़ता हुआ आगे बढ़ता चला गया।
किसी ने सच ही कहा है कि परिश्रम का फल मीठा होता है। संत विनोबा भावे तो परिश्रम को देवता समान पूजते थे और कहते थे कि परिश्रम ही हमारे देवता है।
जिस प्रकार पूजने से देवता प्रसन्न होते हैं और हमें वरदान देते हैं उसी तरह परिश्रम करने से हमें कई उपलब्धियाँ प्राप्त होती हैं।
आदिकवि कालिदास के बारे में मशहूर था कि वो पहले महामूर्ख थे, पर उन्होंने श्रम किया और संस्कृत सीखा और आज वे संस्कृत में महापंडितों में से एक हैं। जिन्हें शायद ही किसी विश्वविद्यालय या शिक्षण संस्थान में पढ़ाया न जाता हो।
अगर हम शिखर पुरुषों की जीवनी पढ़े तो हम देखेंगे कि जो जे.आर.डी. टाटा प्रारंभ में एक निर्धन शरणार्थी की तरह बिहार आए थे, अपने कठोर परिश्रम की बदौलत सिर्फ अमीर ही नहीं बने बल्कि आज टाटा परिवार का नाम विश्व के अग्रगण्य पूंजीपतियों में लिया जाता है। इसी तरह के हमें कई उदाहरण मिलेंगे जो हमें श्रम के महत्व को बताते हैं।
अमिताभ बच्चन एक सफल व्यक्ति हैं, जिन्होंने कई बार अपने जीवन में उतार-चढ़ाव देखे पर वह घबराए नहीं बल्कि निडरता से डटते हुए श्रम का महत्व समझ उसका हाथ थामे प्रगति की राह पर चढ़ते ही जा रहे हैं। आज उन्हें सिनेमा जगत् का चलता-फिरता उद्योग कहा जाता है।
वर्तमान युग तो प्रतिस्पर्धा का युग है। इसमें आए अंतराल के कारण अगर किसी कारणवश पिछड़ जाएं पर सफलता की मंजिल कोसों दूर चली जाएगी। पहले लोग सिर्फ अपने बच्चे के सफल होने की कामना किया करते थे अब सफल या डिस्टिंशन तो छोड़िए टॉप में भी गिनती लगनी शुरु हो गई है।
आज के इस प्रतियोगिता वाले युग में प्राप्तांक की गणना दशमलव के अंकों में की जाती है। इसीलिए अगर हमें सफल होना है तो श्रम करना ही पड़ेगा। किसी महापुरुष ने सच ही कहा है कि पैदा हुआ बालक अपने एक हाथ में मिठाई और दूसरे हाथ में मिर्ची लेकर पैदा होता है अब फैसला उसे लेना है कि वह पहले क्या चखे।
मानव चाहे तो अपने श्रम से अपनी किस्मत, तकदीर तक बदल सकता है।
श्रम के लिए महान दार्शनिक सुकरात ने कहा है कि – सबसे अच्छा मनुष्यवह है, जो अपनी प्रगति के लिए अधिक श्रम करता है।
यह सब देख हम कह सकते हैं कि- श्रम ही सफलता की कुंजी है।
shram ka hamare Jeevan mein bahut hi jyada mahatva hai shram ko ham mehnat bhi kah sakte hain main Na to ek sadharan bhasha mein yah baat Ho gai Jaise agar hamen Mandir chalna hai to hamen sharam karna padega hamen sabji karni hai to hamen sharm karna padega tatha yah bahut hi anivarya hai ab kuchh vyakti hote Hain jis Ram karne se ghabrate Hain padhaai ke liye aashram ki avashyakta hai