Gopalprasad ke charitra ki visheshtae likhie (ch 3 kritika)class 9th
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गोपाल प्रसाद
गोपाल प्रसाद समाज की गली-सड़ी यथास्थितिवादी भावनाओं का प्रतिनिधि है। वह पुरुष प्रधान समाज का वह अंग है जो चली आ रही रूढ़ियों को जैसे-तैसे सही सिद्ध करता हुआ अपना दबदबा बनाए रखना चाहता है। उसकी चारित्रिक विशेषताएँ इस प्रकार हैं –
बड़बोला- गोपाल प्रसाद बड़बोला व्यक्ति है। वह अपनी विशेषताओं का बखान करने में चूक नहीं करता। नए जमाने की तुलना में अपने जमाने की अच्छाई का वर्णन हो। खाने-पीने की बात हो, अपने शरीर की ताकत का वर्णन हो, अपनी मैट्रिक को बढ़ा चढ़ाकर दिखाना हो, वह ऊँचे-ऊँचे स्वर में बिना शर्म-संकोच के बोलता चला जाता है। वह हावी होना जानता है। उसके सामने और लोग दब जाते हैं। शंकर तो बिलकुल भीगी बिल्ली बना रहता है।
चालाक – गोपाल प्रसाद घाघ है। वह बेटे की शादी को बिजनेस समझता है। इसलिए वह घाटे का सौदा नहीं करना चाहता। वह होने वाली बहू को ठोक-बजाकर जाँचता है। उसके चश्मे से लेकर पढाई-लिखाई, संगीत, पेंटिंग, सिलाई, इनाम-सभी योग्यताओं की परख करता है। वह ऐसी सर्वांगपूर्ण बहू चाहता है, जो उसके कहने के अनुसार चल सके। इसलिए वह मैट्रिक से अधिक पढ़ी-लिखी बहू नहीं चाहता। उसके सामने उसे अपने दबने का भी भय है।
गोपाल प्रसाद झूठ बोलने में भी कुशल है। उसका बेटा शंकर एक साल फेल हो चुका है। परंतु वह कुशलतापूर्वक जतलाता है कि वह बीमारी के कारण रह गया था।
हँसौड़ – गोपाल प्रसाद स्वभाव से हँसौड़ है। वह इधर-उधर की चुटीली बातें करके सबका मन लगाए रखता है। खूबसूरती पर टैक्स लगाने का मज़ाक इसी तरह का मनोरंजक मज़ाक है।
लिंग भेद का शिकार – गोपाल प्रसाद वकील होते हुए भी लिंग भेद का शिकार है। वह पढ़ाई-लिखाई पर लड़कों का अधिकार मानता है, लड़कियों का नहीं। उसके शब्दों में-‘कुछ बातें दुनिया में ऐसी हैं जो सिर्फ मर्दो के लिए हैं और ऊँची तालीम भी ऐसी चीजों में से एक है।’ गोपाल प्रसाद अपनी गलत-ठीक बातों को सही सिद्ध करना जानता है। इसके लिए वह तर्क न करके ज़ोर-जोर से बोलता है तथा दूसरों पर हावी होकर बात करता है। उसकी अपशब्द भरी कुतर्क शैली का उदाहरण देखिए-“ भला पूछिए, इन अक्ल के ठेकेदारों से कि क्या लड़कों की पढ़ाई और लड़कियों की पढ़ाई एक बात है। जनाब, मोर के पंख होते हैं, मोरनी के नहीं, शेर के बाल होते हैं, शेरनी के नहीं :::’।
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