Hindi, asked by Nilkanth2726, 1 year ago

gram kendrit bharat essay

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Answered by shailajavyas
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Answer:      भारत एक कृषि प्रधान देश है | भारत के लगभग 83 %से 85% जनता गाँव में रहती है | भारत की सच्ची तस्वीर गाँव में ही देखीे जा सकतीे है । हमारे कवियों ने गाँव की संस्कृति के अत्यंत लुभावने चित्र अपनी कविताओं में प्रस्तुत किए हैं ।

                     कविवर सुमित्रानंदन पंतजी ने तो "भारत माता को ग्रामवासिनी कहा है | " किसी कवि ने गाँवों को भारत की आत्मा कहा तो किसी ने उन्हें देश की धड़कन । भारत के गाँव का वर्णन करते ही प्रकृति के झूले, हरे भरे खेत , झूमती सरसों , बरसता सावन, खुली हवा के झोंके, स्वच्छ वातावरण, प्रदूषण मुक्त रहन-सहन ,शांत वातावरण, धन-धान्य से भरे खेत -खलिहान,गाँव के मनोरम दृश्य तथा लुभावनी झांकी इन बातों को देखकर प्रत्येक व्यक्ति का मन करता है कि गाँव में ही बस जाए ।

                         यहाँ का सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन अत्यंत सीधा-सादा है | यहां के निवासी भोले तथा मधुर स्वभाव के होते हैे | यही कारण है कि वे प्रकृति के सहायक बनते हैं | वे केवल कृषि में फसलों को उगाने में ही माहिर नहीं होते है अपितु गाँव के लोकसंगीत और गीतों का गायन और वादन भी जानते है | अस्तु जब इनकी फसलें पक जाती है तब इनकी प्रसन्नता देखते ही बनती है | इनकी स्त्रियाँ व ललनाएँ गीत गाती है झूला झूलती है तब गाँव की अद्भुत छटा देखकर लगता है मानो स्वर्ग धरती पर उतर आया हो |        

                              भारत की ग्राम्य धरा में प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे के सुख -दुख में बढ़ -चढ़कर हिस्सा लेते है | यहां श्रमहीन व्यक्ति का कोई काम नहीं है  | यहां के सारे मेहनत कर्मी देश के लिए अन्नदाता बनकर रात -दिन एक करके खेती करते है | मजदूर लोग बड़े-बड़े भवन ,बांध ,सड़क ,वस्त्र उद्योग आदि को चलाने में अपनी सारी ताकत लगाते हैं  | गोपालसिंह नेपाली  ने कहा है कि "हरियाली में सरसों पीली शहरों को गोद में लेकर चली गांव की डगर नुकीली ।"

                    ये भारत की ग्राम्य धरा कि विडंबना ही है कि देश की तरक्की में बढ़चढ़कर योगदान देने वाली हमारी ग्राम्य संस्कृति अभी भी शिक्षा की दृष्टि से पिछडी हुई हैं  | विद्यालय ,महाविद्यालय तथा चिकित्सकों का तथा चिकित्सालयों का अभाव है  | यही कारण है इन प्राथमिक आवश्यकताओं की कमी से प्रभावित होकर लोग गाँव को त्याग रहे है । दूरदराज के गांवों में अशिक्षा ,गरीबी ,कुपोषण ,अभाव आदि दुर्गुणों के कारण गाँव का चित्र जहां एक और अभाव को दर्शाता है तो दूसरी ओर लोगों को गाँव से दूर भी कर देता है ।  

                              पारंपरिक ग्रामीण अर्थव्यवस्था ,जो कि कृषि ,लघु कुटीर उद्योगों तथा वनस्पति उत्पादों पर निर्भर थी वे औद्योगिकरण ,शहरीकरण तथा वैश्वीकरण के आगमन के साथ प्राय: समाप्त होती जा रही है | भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था का आधार कृषि ,नवीन तकनीकों के इस्तेमाल के बावजूद संकट का सामना कर रहा है । भारत की कुल श्रम शक्ति का करीब 60% भाग कृषि व सहयोगी कार्यों से आजीविका प्राप्त करता है इसके बावजूद देश के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र का योगदान केवल 16% तक ही है | निर्यात के मामले में भी इसका हिस्सा मात्र 10% ही है | ग्राम केन्द्रित भारत में रोजगार के महत्वपूर्ण अवसर ग्राम्य धरा में उपलब्ध होने के बावजूद ग्रामीण क्षेत्र से लोगों का पलायन जारी है | तकरीबन 40% किसान रोजगार करना चाहते हैं |

             देश के ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर भारी संख्या में पलायन ग्रामीण रोजगार के अवसरों की निराशाजनक तस्वीर प्रस्तुत करता है परंतु सरकार की योजनाओं के कारण ग्रामीण रोजगार में लोगों को अवसर प्रदान किए जा रहे हैं | जिसके कारण लोगों के पलायन पर रोक लगी है ।  सरकार किसानों को प्रोत्साहन देने हेतु कई प्रकार के ऋण भी बैंकों से  कम ब्याज में उपलब्ध करवा रही है | किसानों को अन्नदाता का दर्जा देकर सरकार ने उनके पुराने ऋणों को कई राज्यों में माफ भी किया  है | सचमुच गाँव की उन्नति ही भारत की उन्नति है | जब हमारे गाँव मुस्कुराएँगे तभी भारत मुस्कुराएगा |

                               

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