>श्रम को पूजा क्यों माना गया है?
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वायु, जल, भोजन आदि मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताएँ हैं । वह इनके बिना जीवित नहीं रह सकता है । परंतु इन सबके लिए श्रम अथवा परिश्रम की आवश्यकता होती है । अकर्मण्यता मनुष्य के प्राकृतिक गुणों के विपरीत है ।
श्रम से ही वह अपने दैनिक कृत्यों का सुचारू रूप से संचालन कर सकता है तथा स्वयं को शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ रख सकता है । जो मनुष्य श्रम पर आस्था रखते हैं और उसे ही पूजा समझते हैं वे कर्मवीर होते हैं । ऐसे व्यक्ति विपरीत परिस्थितियों में भी निराश व हताश नहीं होते अपितु संघर्ष करते हुए समस्त अवरोधों पर विजय प्राप्त करते हैं । वे लोग भाग्यवादी नहीं होते ।
वे जीवन पथ पर अपने नुकसान या आंशिक अवरोधों के लिए किसी अन्य को उत्तरदायी नहीं ठहराते । वे स्वयं ही उन परिस्थितियों का अवलोकन करते हैं एवं संबंधित कमियों का निवारण कर विजय पथ पर चल पड़ते हैं ।