guru nanak dev ke 5 dohe with meaning in hindi
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गुरुनानक देव के पाँच दोहे अर्थ सहित...
एक ओंकार सतिनाम, करता पुरखु निरभऊ।
निरबैर, अकाल मूरति, अजूनी, सैभं गुर प्रसादि ।
भावार्थ : गुरु नानक देव जी कहते हैं, कि प्रभु एक है। वे ही सत्य का निर्माण करते हैं। उनका कोई आकार नही है। वे जन्म-मृत्यु से परे हैं। वे स्वयं प्रकाशित हैं। उनके नाम को जपने से उनका आशीर्वाद सदैव साथ मिलता है।
साचा साहिबु साचु नाइ
भाखिआ भाउ अपारू।
आखहि मंगहि देहि देहि
दाति करे दातारू।
भावार्थ : गुरु नानक देव जी कहते हैं कि प्रभु सच्चा और उनका नाम सच्चा है। अलग-अलग धर्म और विचारों में भले ही प्रभु को अलग-अलग नाम दिये हों, लेकिन वो एक है। हम सब उनकी दया के अधिकारी हैं। प्रभु हमें हमारे कर्मों के अनुसार अपनी कृपा प्रदान करते हैं।
गुरमुखि नादं गुरमुखि वेदं। गुरमुखि रहिआ समाई।
गुरू ईसरू गुरू गोरखु बरमा। गुरू पारबती माई।
भावार्थ : गुरु नानक देव जी कहते हैं कि गुरू वाणी ही शब्द एवं वेद है। इसी गुरुवाणी रूपी शब्दों में प्रभु निवास करते हैं। गुरू ही शिव है, गुरु ही विष्णु है, गुरु ही ब्रह्मा हैं। गुरु ही पार्वती माता हैं। जिस रूप में गुरु को पूजो गुरु उसी रूप में हैं।
ऐसा नामु निरंजनु होइ।
जे को मंनि जाणै मनि कोइ।
भावार्थ : गुरु नानक देव जी कहते हैं कि प्रभु के नाम का सुमिरन करने से मिलने वाले आनंद का वर्णन तो सुमिरन करने वाला ही बता सकता है। दूसरा अन्य कोई व्यक्ति उस आनंद का वर्णन नही बता सकता।
रमी आवै कपड़ा। नदरी मोखु दुआरू।
नानक एवै जाणीऐ। सभु आपे सचिआरू।
भावार्थ : गुरु नानक देव जी कहते है, कि हमारे कर्मों के अनुसार ही हमें वैसा ही शरीर प्राप्त होता है। हमें मोक्ष चाहिये तो ये हमें प्रभु की कृपा से मिलेगा। इसलिये अपने सारे वहमों का नाश करते हुए हमें नित्य एवं निरंतर प्रभु चिंतन करते रहना चाहिये।