है बिखेर देती वसुंधरा
मोती, सबके सोने पर।
रवि बटोर लेता है उनको
सदा सबेरा होने पर।
और विरामदायिनी अपनी
संध्या को दे जाता है।
शून्य श्याम तनु जिससे उसका
नया रूप छलकाता है।। भावार्थ
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Answer:
वसुंधरा हर जगह मोती और सोना फैला देती हैं और रवि उसको उठा लेता है और विरामदायिनीअपनी संरव्या को दे जाता है शून्न्य शयाम तनु जिससे उसका नया रूप दिखता है
यह पंक्तियाँ चारु चंद्र की चंचल किरणें कविता से ली गई है | यह कविता मैथिलीशरण गुप्त द्वारा लिखी गई है|
है बिखेर देती वसुंधरा
मोती, सबके सोने पर।
रवि बटोर लेता है उनको
सदा सबेरा होने पर।
और विरामदायिनी अपनी
संध्या को दे जाता है।
शून्य श्याम तनु जिससे उसका
नया रूप छलकाता है।। भावार्थ
इस कविता में कवि ने पंच वटी के प्राकृतिक सोंदर्य का वर्णन किया गया है |
वनवास के समय पंचवटी में निवास करते हुए लक्ष्मण एक कुटिया में सीता की रक्षा करते हुए रात की प्राकृतिक शोभा का वर्णन करते हुए कहते हैं ,
पृथ्वी सब के सो जाने पर आकाश में नक्षत्र रूपी मोतियों को फैला देती है , और सूर्य सदा ही सुबह हो जाने पर उनको बटोरकर रख लेता है | सूर्य भी नक्षत्र रूपी मोतियों को संध्या रुपी सुन्दरी को देकर अपने छुप जाता है |
अर्थात नक्षत्र रूपी मोतियों को धारण करके उस संध्या रुपी सुन्दरी का शून्य-सा श्यामल रूप झिलमिल करता हुआ अति दीप्त हो जाता है |