Hindi, asked by anantplaygmae, 1 month ago

िहȽी भाषा का िवकासाȏक पįरचय दीिजए।​

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Answered by thakkarmahi6c10
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Answer:

the process by which green plants turn carbon dioxide and water into food using energy from sunlight

Answered by arnabdutta63
3

Answer:

भाषा या ज़बान एक बहते पानी की तरह है. जो जहां से भी गुज़रती है वहां की दूसरी चीज़ों को अपने साथ समेटते हुए आगे बढ़ती है.

एक ही धारा से ना जाने और कितनी धाराएं निकल पड़ती हैं. इसी तरह एक ही भाषा से ना जाने कितनी भाषाओं का जन्म होता है.

जैसे संस्कृत से हिंदी और दूसरी ज़बानें वजूद में आईं. लैटिन ज़बान ने भी बहुत सी भाषाओं को जन्म दिया, जैसे इटैलियन, फ्रेंच, स्पेनिश, रोमानियन और पुर्तगाली भाषा.

इसी तरह दक्षिण अफ्रीका में बोली जाने वाली ज़बान, अफ्रीकान्स भी डच भाषा से निकली है.

यानी दुनिया में आज जितनी भी ज़बानें हैं वो किसी न किसी पुरानी भाषा से पैदा हुई हैं.

ऐसे में सवाल ये है कि ग्लोबल लैंग्वेज कही जाने वाली अंग्रेज़ी ने कितनी नई ज़बानों को जन्म दिया है?

भाषाएं निरंतर बदलती रहती हैं. दूसरी भाषाओं के साथ मिलकर एक नया रंग लेती रहती हैं.

भाषाओं के माहिर इसके लिए तीन बातों को अहम मानते हैं. पहली वजह है वक़्त.

समय के साथ ज़बानों के रूप रंग बदल जाते हैं. उसमें नए लफ़्ज़ जुड़ते हैं, पुराने हटते हैं.

अपने बुज़ुर्गों से सीखे हुए अल्फ़ाज़ कई नस्लों तक चलते हैं. किसी भाषा में बदलाव रातों-रात नहीं आता.

किसी पुरानी ज़ुबान से नए के जन्म लेने में लंबा वक्त लग जाता है. जैसे लैटिन से इटैलियन ज़बान का वजूद सदियों के बाद आया.

इसी तरह शेक्स्पीयर के ज़माने की अंग्रेज़ी और आज की अंग्रेज़ी दो अलग ज़बानें लगती हैं. जैसे प्राचीन और मॉर्डन ग्रीक.

जब एक भाषा किसी दूसरी भाषा का सामना करती है तो उसके शब्दों के साथ-साथ उसकी व्याकरण को भी अपने में समा लेती है.

दो अलग ज़बानों के बोलने वाले जब एक दूसरे से बात करते हैं तो उसे आसान बनाने की कोशिश करते हैं.

इस तरह दो भाषाओं के मिलने से किसी तीसरी भाषा का जन्म होता है. कई भाषाओं के मेल से बनने वाली नई ज़बान को क्रिओल कहते हैं.

अंग्रेज़ी और दूसरी स्थानीय बोलियों के मेल से दुनिया में कई नई क्रिओल का जन्म हुआ है.

आज की अंग्रेज़ी ज़बान ऐंग्लो सैक्सन बाशिंदों की पैदावार भले हो, लेकिन इसके शब्दों और व्याकरण पर पुरानी डेनिश और नॉर्स भाषाओं का असर ज़्यादा है.

साथ ही अंग्रेज़ी में बहुत से फ्रेंच लफ़्ज़ भी हैं. इसीलिए मॉडर्न अंग्रेज़ी को भी क्रियोल की फ़ेहरिस्त में रखा गया है.

और अंग्रेज़ी और दूसरी ज़बानों के मेल से भी कई नई क्रिओल या मिली-जुली ज़बानें पैदा हुई हैं.

चलिए ऐसी ही कुछ ज़बानों से आपका तार्रुफ़ कराते हैं.

पूर्वी एशियाई देश पापुआ न्यूगिनी में बोली जाने वाली 'टोक पसिन' ऐसी ही एक ज़बान है.

वहां टोक पसिन बोलने और समझने वालों की संख्या एक लाख बीस हज़ार है. जबकि क़रीब चालीस लाख़ लोगों की ये दूसरी ज़बान है.

टोक पसिन की शुरुआत खिचड़ी भाषा के तौर पर ही हुई थी. इसकी जड़ अंग्रेज़ी ज़बान की मिट्टी में थी.

मगर इसमें जर्मन, पुर्तगाली और बहुत सी ऑस्ट्रोनेशियन भाषाओं का असर था.

धीरे-धीरे इस खिचड़ी भाषा को अपने लिए देसी लोग मिले. उन्होंने इसे तराश कर क्रियोल का रूप दिया.

बहुत सी भाषाओं का प्रभाव होने की वजह से इसके व्याकरण में स्वर और व्यंजन का खुला बंटवारा नहीं है.

अंग्रेज़ी से ही पैदा हुई एक और ज़बान है, 'पिटकर्न'. ये बोली, प्रशांत महासागर में स्थित एक छोटे से द्वीप पिट केयर्न के बाशिंदे बोलते हैं.

1789 में एक अंग्रेज़ जहाज़ के नाविकों ने कप्तान के ख़िलाफ़ बग़ावत कर दी थी.

इसके बाद वो लोग प्रशांत महासागर के ही ताहिती नाम के देश में बस गए थे.

इन्हीं लोगों ने अंग्रेज़ी और स्थानीय भाषा के मेल से पिटकर्न नाम की नई ज़बान को जन्म दिया.

हालांकि आज इसके बोलने वालों की तादाद बेहद कम है. इस ज़बान के बचने की उम्मीद भी बहुत कम है.

इसी तरह अमरीका की एक भाषा है गुला, जिसे गीची के नाम से भी जाना जाता है.

इसका वजूद अठारहवीं से उन्नीसवीं सदी के बीच अमल में आया था. आज अमरीका में क़रीब ढाई लाख़ लोग ये ज़बान बोलते हैं.

इनमें राष्ट्रपति ओबामा की पत्नी मिशेल और अमरीका के सुप्रीम कोर्ट के एक जज शामिल हैं.

गुला को आज अमरीका में एक विरासत के तौर पर सहेजने की कोशिश की जा रही है.

ये उन्नीसवीं सदी में अमरीका में ग़ुलाम रहे अफ्रीकियों और अंग्रेज़ी के मेल से बनी ज़बान है.

अगर आपने कभी कुंबाया गाया होगा तो यक़ीनन एक ना एक अल्फ़ाज़ गुला ज़बान का ज़रूर इस्तेमाल किया होगा.

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