हे भगवान ! तब के लिए ! विपद के लिए। इतना आयोजन। परमपिता की
इच्छा के विरूद्ध इतना साहस। पिताजी क्या भीख न मिलेगी? क्या कोई हिन्दू
भू पृष्ठ पर बचा न रह जायेगा, जो ब्राहमण को दो मुट्ठी अन्न दे सके? यह
असम्भव है। फेर दीजिए पिताजी, मैं काँप रही हूँ-इसकी चमक आँखों को
अन्धा बना रही है।
2) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।
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Answer:प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी’ के ‘गद्य-खण्ड’ में संकलित ‘ममता’ नामक कहानी से उधृत है। इसके लेखक छायावादी युग के प्रवर्तक श्री जयशंकर प्रसाद हैं।
अथवा निम्नवत् लिखिए
पाठ का नाम-ममता। लेखक का नाम-श्री जयशंकर प्रसाद।
[ विशेष—इस पाठ के शेष सभी गद्यांशों के लिए प्रश्न ‘अ’ का यही उत्तर इसी रूप में लिखा जाएगा।]
Explanation:
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